रामपुर में नवाब के वारिसों के पास कितनी संपत्ति और कौन हैं दावेदार?

रामपुर शहर पिछले कुछ समय से समाजवादी पार्टी के नेता आज़म ख़ान, उनके बयानों और उनके ख़िलाफ़ हो रही सरकारी कार्रवाइयों की वजहों से चर्चा में रहा है लेकिन इस समय चर्चा का मुद्दा इससे कुछ इतर है. चर्चा में है वहां के अंतिम नवाब रज़ा अली ख़ान की पारिवारिक संपत्ति जो दशकों चले मुक़दमे के बाद अब उनके परिजनों में बांटी जानी है.


अरबों रुपये की संपत्ति के बंटवारे की प्रक्रिया लगभग 45 साल लंबी चली क़ानूनी लड़ाई के बाद शुरू हो गई है. चल और अचल संपत्ति का अभी मूल्यांकन हो रहा है और यह सोलह हिस्सेदारों के बीच बँटनी है जो न सिर्फ़ रामपुर में रहते हैं बल्कि उनमें से कई लोग अमरीका और जर्मनी में भी बस गए हैं.


पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने इस विवाद का पटाक्षेप करते हुए आदेश दिया कि संपत्ति का बँटवारा इस्लामी शरीयत के हिसाब से होगा और इसे अंतिम नवाब के सभी जीवित सदस्यों के बीच बांटा जाएगा जिनमें ख़ानदान के पुरुष और महिला दोनों ही लोग हिस्सेदार होंगे. संपत्ति की पहचान और क़ीमत का मूल्यांकन ज़िला जज की निगरानी में हो रहा है और ज़िला जज ने इसके लिए दो एडवोकेट कमिश्नर नामित किए हैं.


ज़िला जज की ओर से नामित एडवोकेट कमिश्नर अरुण प्रकाश सक्सेना ने  बताया, "रामपुर में नवाब ख़ानदान की कम से कम पांच बड़ी अचल संपत्तियां हैं जिनमें सबसे महत्वपूर्ण नवाब ख़ानदान की कोठी ख़ासबाग है. इसके अलावा बेनज़ीर बाग, नवाब रेलवे स्टेशन और शाहाबाद स्थित लखी बाग जैसी अचल संपत्तियां हैं. इन सबका क्षेत्रफल कम से कम एक हज़ार एकड़ है. इनके अलावा कोठी में रखे गए बेशक़ीमती गहने, ख़ूबसूरत और क़ीमती पेंटिंग्स और तमाम तरह के असलहे भी हैं. इन सबका बँटवारा होना है. संपत्ति पर 18 लोगों ने दावा जताया था, जिनमें दो की मौत हो चुकी है और इन दोनों का कोई वारिस भी नहीं है. लिहाज़ा यह पूरी संपत्ति अब 16 लोगों में ही बँटनी है."


रामपुर के आख़िरी नवाब रज़ा अली ख़ान देश की आज़ादी के बाद सबसे पहले लोगों में से एक थे जिन्होंने भारत में रहने का फ़ैसला किया और विलय पत्र पर हस्ताक्षर किए. इसके एवज़ में उन्हें अपनी संपत्ति और क़िले में से किसी एक को चुनने का मौक़ा मिला. नवाब रज़ा अली ख़ान ने क़िले की बजाय ख़ासबाग की कोठी और कुछ अन्य संपत्तियों का चुनाव किया.


नवाब रज़ा अली ख़ान की मौत साल 1966 में हुई थी. नवाब की मौत के बाद उनके बड़े बेटे को उत्तराधिकारी होने के नाते ज़्यादातर संपत्ति भी मिल गई लेकिन नवाब के दूसरे बेटों ने इसे कोर्ट में चुनौती दी. अरुण प्रकाश सक्सेना बताते हैं, "आखिरी नवाब रज़ा अली ख़ान की प्रॉपर्टी को लेकर उनके बेटों में विवाद होने के बाद साल 1972 में रामपुर डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में केस फ़ाइल किया गया.


इसके बाद ये केस हाई कोर्ट में चला और हाई कोर्ट ने इसे ख़ारिज कर दिया जिससे पूरी संपत्ति बड़े बेटे मुर्तज़ा अली के हिस्से में चली गई. हाई कोर्ट की दलील थी कि नवाब के बड़े बेटे ही उनके उत्तराधिकारी थे इसलिए संपत्ति पर भी उनका अधिकार है."


हाई कोर्ट से राहत न मिलने के बाद मुर्तज़ा अली के भाई सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए. पिछले साल 31 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने इस विवाद में हाईकोर्ट के फ़ैसले को पूरी तरह से पलट दिया. अरुण प्रकाश सक्सेना बताते हैं, "साल 1950 के बाद कोई भी नवाब नहीं है और आखिरी नवाब रज़ा अली खान ही थे. ऐसे में उनकी संपत्ति मुस्लिम पर्सनल लॉ और शिया पर्सनल लॉ के हिसाब से सभी वारिसों को मिलेगी."


जायदाद के अकेले वारिस?


नवाब के वारिसों में पूर्व सांसद बेग़म नूरबानो के बेटे और राज्य सरकार में मंत्री रह चुके काज़िम अली खां 'नवेद मियां' ही रामपुर में रहते हैं, बाक़ी सभी लोग रामपुर से बाहर हैं. यहां तक कि नवाब मुर्तज़ा अली खां के बेटे, जो कोर्ट के फ़ैसले से पहले ज़ायदाद के अकेले वारिस थे, वो भी मुख्य रूप से गोवा और दिल्ली में ही रहते हैं. इसके अलावा तलत फ़ातिमा हसन अमरीका में, समन अली ख़ां महाराष्ट्र में, सैयद सिराजुल हसन बेंगलुरु में और गिजाला मारिया सैगबर्ग जर्मनी में रहती हैं.


मुर्तज़ा अली ख़ां की एक बेटी की शादी पाकिस्तान में हुई थी जिनके पति पाकिस्तान के एयर चीफ़ मार्शल रह चुके हैं. जानकारों के मुताबिक, उनके हिस्से की संपत्ति शत्रु संपत्ति घोषित की जा सकती है जिसके कस्टोडियन ज़िला मजिस्ट्रेट होंगे. कानपुर के ज़िलाधिकारी आंजनेय कुमार सिंह कहते हैं कि पाकिस्तान की नागरिक बन चुकी किसी शेयरधारक का हिस्सा अपने आप ही शत्रु संपत्ति हो जाएगा और वह संपत्ति सरकारी संरक्षण में रहेगी.


रामपुर में रह रहे नवाब के वंशज काज़िम अली खां 'नवेद मियां' कहते हैं कि अब केवल ज़मीन ही बची है, बाक़ी कोठी के अंदर कुछ मिलना मुश्किल है. बातचीत में वो कहते हैं, "चूंकि पूरा मामला कोर्ट में था और कोर्ट में जाने से पहले एक ही व्यक्ति इस पूरी संपत्ति का हक़दार था, इसलिए उसके भीतर क्या बचा है और क्या नहीं, उसे वही जानता होगा. लेकिन मुझे आशंका है कि अब शायद ही कोई चीज़ वहां बची हो. संपत्ति का बँटवारा जब होगा तो ये भी देखा जाएगा कि जो चीजें ग़ायब हुई हैं, उनका बँटवारा कैसे किया जाए. क्योंकि जब ये मामला कोर्ट में गया तो क़रीब पांच हज़ार वस्तुओं की सूची बनाकर कोठी को सील किया गया था."


सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन सुनिश्चित कराने के लिए ज़िला जज की ओर से नामित एडवोकेट कमिश्नर नवाबों की संपत्ति का सर्वेक्षण कर रहे हैं. सर्वेक्षण में चल-अचल संपत्ति कितनी है, उसका मूल्यांकन कितना है और शरीयत के हिसाब से किसका कितना शेयर है, यानि किसे कितनी संपत्ति मिलेगी, इसकी रिपोर्ट तैयार की जा रही है. इस काम में लेखपालों की भी मदद ली जा रही है. संपत्ति का सर्वे और मूल्यांकन रिपोर्ट के लिए सुप्रीम कोर्ट ने दिसंबर 2020 तक का समय निर्धारित किया है.


ज़िला प्रशासन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि अभी कोठी ख़ास बाग का ही सर्वे हुआ है जो क़रीब पांच सौ एकड़ है. उन्होंने बताया, "पचास एकड़ से ज़्यादा जगह में तो सिर्फ़ कोठी ही बनी है जिसमें दो सौ से भी ज़्यादा कमरे हैं. मौजूदा सर्किल रेट के हिसाब से अब प्रॉपर्टी का सर्वे होना है. यह संपत्ति रामपुर शहर में ही और इस हिसाब से देखा जाए तो एक एकड़ ज़मीन की क़ीमत करोड़ों रुपये है. सिर्फ़ ज़मीन की ही क़ीमत हज़ारों करोड़ रुपये है."


रामपुर में ज़्यादातर इमारतें जिनमें ज़िलाधिकारी कार्यालय और आवास से लेकर तमाम सरकारी दफ़्तरों के कार्यालय भी नवाब की ही संपत्ति रही हैं. लेकिन बताया जा रहा है कि इनमें से ज़्यादातर संपत्ति अंतिम नवाब के ही समय में सरकार को हस्तांतरित कर दी गई थी. सबसे दिलचस्प संपत्ति रामपुर रेलवे स्टेशन के पास ही नवाब का निजी रेलवे स्टेशन है जहां नवाब की निजी ट्रेन को दो बोगियां आज भी जंग खाती वहीं खड़ी हैं.


स्थानीय पत्रकार मोहम्मद मोजस्सिम बताते हैं, "यहां से क़रीब बीस किमी दूर शाहाबाद में लखीबाग भी काफ़ी क़ीमती संपत्ति है. इसका नाम ही इसलिए पड़ा क्योंकि यहां क़रीब एक लाख आम के पेड़ हैं. यह ज़मीन भी चार सौ एकड़ से ज़्यादा है. रामपुर शहर में भी जो नवाबों की ज़मीनें हैं वहां न सिर्फ़ आम के बल्कि तमाम दुर्लभ क़िस्म के पेड़ हैं. ज़मीन पर खेती भी होती है.


रामपुर में इस समय आम लोगों के बीच नवाबों की संपत्ति की ही चर्चा है. सबसे ज़्यादा चर्चा तो कोठी ख़ासबाग के भीतर उस ख़ज़ाने की हो रही है जो अभी खोला जाना है. बताया जा रहा है कि इसमें अरबों रुपये के हीरे-जवाहरात रखे हैं. काज़िम अली खां उर्फ़ नवेद मियां कहते हैं, "चांदी की पलंग, तलवारों पर सोने और हीरे जड़ी हैंडिल्स, क़ीमतीं रत्न जड़ी पोशाकें ऐसी न जाने कितनी चीजें रखी हुई हैं जिनकी क़ीमत अरबों रुपये होगी. इसके अलावा बेशक़ीमती ख़ूबसूरत पेंटिंग्स की क़ीमत उसे पहचानने वाले ही बता सकते हैं."


हालांकि अब तक जो चीजें मिली हैं, वो भी बहुत क़ीमती है. संपत्ति के बँटवारे की प्रक्रिया के तहत 17 फ़रवरी को जब ज़िला जज के निर्देश पर शस्त्रागार यानी आर्मरी के दरवाज़े खोले गए तो उसमें सोने और चांदी जड़े हथियार मिले. पहले ही दिन की ग़िनती में चार सौ से ज़्यादा शस्त्र मिले, जिनमें तलवारें, खंज़र, भाले, पिस्टल, बंदूकें, रायफल और अन्य हथियार शामिल हैं.


आर्मरी से जो हथियार मिले हैं, वो स्कॉटलैंड, लंदन फ्रांस और जर्मनी की मशहूर कंपनियों के बने हैं. नवेद मियां के मुताबिक, "आज़ादी से पहले की इस कोठी में लिफ़्ट भी लगी है और पूरी कोठी में सेंट्रलाइज़्ड एसी लगा है."


कुछ दावेदारों की आपत्ति के बाद अब इस प्रक्रिया को गुप्त रखा जा रहा है और केवल अदालत के निर्देश पर प्रशासन की ओर से गठित टीम, संपत्ति के दावेदारों और वकीलों के अलावा अन्य लोगों के जाने और तस्वीरें लेने पर पाबंदी लगा दी गई है. बताया जा रहा है कि ऐसा सुरक्षा कारणों से किया गया है. सारी चीज़ों को निकालने के बाद उन्हें कोर्ट में जमा किया जाएगा और तब उनकी क़ीमतों का निर्धारण किया जाएगा.


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