राजस्थान सरकार के राज्य बजट से मुस्लिम समुदाय को निराश हाथ लगी।


       सीएए-एनपीआर व एनआरसी के विरोध मे ऐतिहासिक धरना दे रही महिलाएं भी बजट से नाखुश।

जयपुर।
            हालांकि अशोक गहलोत के चल रहे तीसरे मुख्यमंत्री कार्यकाल को शामिल करते हुये उनके द्वारा रखे गये बारवे राज्य बजट से भी पहले की तरह मुस्लिम समुदाय को लगातार घोर निराशा हाथ लगी है। राजस्थान मे भाजपा व कांग्रेस के दो दलीय व्यवस्था कायम रहने के चलते गहलोत भलीभांति जानते है कि मुस्लिम समुदाय की बजट व सरकार मे चाहे जितनी अनदेखी की जाये पर मजबूरन भाजपा के डर के मारे उन्हें आना तो कांग्रेस के पास ही। मुस्लिम समुदाय का प्रदेश मे कांग्रेस की सरकार लाने मे बेशक योगदान हो सकता है लेकिन गहलोत को मुख्यमंत्री बनाने मे उनका योगदान कतई नही माना जा सकता है। क्योंकि गहलोत तो दिल्ली की सेटिंग्स व जोड़तौड़ के कारण मुख्यमंत्री बने है।
           राज्य बजट विधानसभा मे पैश करने से पहले मुख्यमंत्री गहलोत ने वैसे तो मुस्लिम समुदाय के उत्थान के लिये प्रावधान रखने के लिये किसी तरह के डायलॉग समाजी-सियासी व धार्मिक विद्वानों से नही किये लेकिन मंत्री शाले मोहम्मद सहित कांग्रेस के सभी नो विधायको ने बजट के पहले एक सामुहिक पत्र लिख कर मामूली सी मात्र तीन बाते जो उन्होंने अपने गत मुख्यमंत्री कार्यकाल 2013-14 के बजट मे घोषणाओं को याद दिलाते हुये उन पर फिर से विचार कर उनका बजट मे प्रवधान करने की मांग करने के बावजूद उन पर किसी तरह का अमल तक नही हुवा है। सभी नो मुस्लिम कांग्रेस विधायको के मुख्यमंत्री को पत्र लिखने के बावजूद आम मुसलमान गहलोत के बजट के प्रति किसी भी तरह से आशावादी नही था। क्योंकि आजतक मुस्लिम उत्थान के लिये गहलोट के पहले के सभी ग्यारह बजटो मे की गई घोषणाएं मात्र घोषणाएं ही साबित होती रही है।
              दो दशक से अधिक समय से  मदरसा पैरा टीचर समायोजन होने व मानदेय बढाने की उम्मीद लगाये हुये है वही मदरसों के आधुनिकीकरण व इमामो की सरकारी स्तर पर सैलरी देने की दिल्ली सरकार की तरह उम्मीद को झटका लगा। अल्पसंख्यक बहुल सभी उपखण्डों मे आईटीआई खोलने , बालक बालिका आवासीय विधालय खोलने के अलावा सभी जिला स्तर पर बालिका व बालक छात्रावास खोलने की घोषणाओं का ना होना दुखद है। उर्दू विषय के सभी श्रेणी के अध्यापकों की भर्ती निकालने की भी घोषणा नही हुई। मदरसा बोर्ड को मजबूत करने के लिये उसे सवैंधानिक दर्जा देने की बात भी दूर दूर तक नजर नही आई। हज कमेटी-वक्फ विकास समिति व अल्पसंख्यक विकास वित्त निगम की भी बजट मे चर्चा नही होना निराशा का भाव पैदा करता है। राजस्थान मे दो सरकारी होम्योपैथी कालेज शूरु करने की बजट मे घोषणा हुई लेकिन अगर उसके साथ चाहे उनके ग्रह क्षेत्र जोधपुर मे ही सही एक सरकारी यूनानी मेडिकल कालेज व अलग से यूनानी मेडिकल निदेशालय बनाने की भी घोषणा होती तो जख्मो पर मामूली मरहम लगता। पर ऐसा बजट मे कतई नजर नहीं आया। सालो से यूनानी चिकित्सको की भर्ती नही होने से उन चिकित्सको मे भारी बेरोजगारी कायम है। पर नई भर्ती करने की घोषणा नही हुई। वकफ बोर्ड के जमीन पर सरकारी विभागों के कब्जे हटाने या पीडब्ल्यूडी विभाग की दर से उनका किराया तय होने के अतिरिक्त वक्फ गजट के मुताबिक सभी जायदादों को राजस्व रिकार्ड मे दर्ज करने के सम्बन्धित घोषणा होती तो अच्छा होता। 
           अन्य भारतवासियों के साथ मिलकर अल्पसंख्यक समुदाय भी भारत के अन्य हिस्सों की तरह सीएए-एनपीआर व एनआरसी के खिलाफ राजस्थान मे भी आंदोलनरत है। खासतौर पर मां व बेटियों ने घर के बाहर निकलकर जगह जगह शाहीनबाग बनाकर मुश्किल हालात मे आंदोलन कर रही है। जयपुर के शाहीनबाग मे आंदोलनरत महिलाओं के मध्य मुख्यमंत्री गहलोत स्वयं आकर समर्थन जता चुके है।  उन्होंने सीएए के खिलाफ विधानसभा मे प्रस्ताव पास करने के बावजूद एनपीआर पर अभी तक जबान तक नही खोली है। जबकि मध्य प्रदेश की कांग्रेस सरकार ने एनपीआर नही करने का कह दिया है।
            कुल मिलाकर यह है कि मुस्लिम समुदाय का राजस्थान की सत्ता मे भागीदारी मिलने का विश्वास कमजोर होता जा रहा है। आवश्यकता अविष्कार की जननी की कहावत को कांग्रेस पार्टी व उसके नेताओं को जेहन मे रखकर उनको यह भ्रम निकालना होगा कि राजस्थान मे भाजपा व कांग्रेस दो दलीय व्यवस्था कायम होने के कारण मुस्लिम मतदाता लूटने-पिटने के बावजूद आखिरकार आयेगा तो कांग्रेस के साथ ही। दिल्ली मे 15-साल लगातार सरकार बनाने वाली कांग्रेस के बजाय जब विकल्प बना तो कांग्रेस चारो खाने चीत होकर जीरो सीटो पर ही नहीं पहुंची बल्कि चुनाव लड़ रहे उनके 66-उम्मीदवारों मे से 63 उम्मीदवारों की जमानत भी हाल ही के चुनाव मे जब्त हो गई। कांग्रेस विधायक रफीक के व एक पैरा टीचर के मध्य कथित वार्तालाप के वायरल ओडियो मे रफीक कह रहे है कि मुख्यमंत्री बजट मे मुस्लिम के मुतालिक वाला पन्ना भूल आये थे। वो अब बजट बहस के जवाब मे घोषणा कर देगे। इसके विपरीत बात यह है कि मुख्यमंत्री गहलोत को राजस्थान के मुस्लिम समुदाय को उनके शाशित राज्य का नागरिक मानकर उनके उत्थान के लिये कम से कम  चाहे मन बहलाने के लिये घोषणाए करने पर तो विचार करना चाहिए।


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