नयी दिल्ली, : मुजफ्फरपुर बालिका गृह में लड़कियों के कथित यौन उत्पीड़न एवं शारीरिक प्रताड़ना मामले की सुनवाई कर रही यहां की एक अदालत ने अपना फैसला एक बार फिर 20 जनवरी के लिये टाल दिया। इससे पहले, अदालत ने इस मामले में फैसला पिछले साल नवंबर में एक महीने के लिये स्थगित किया था और फिर इसे 14 जनवरी के लिये टाल दिया था।
साथ ही, अदालत ने मामले के मुख्य आरोपी ब्रजेश ठाकुर की एक याचिका पर सीबीआई को दो दिनों के अंदर अपना जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया।
दरअसल, ठाकुर ने एक याचिका दायर कर दावा किया है कि मामले में गवाहों की गवाही विश्वसनीय नहीं हैं।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश सौरभ कुलश्रेष्ठ ने सीबीआई को दो दिनों के अंदर अपना जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया। उन्होंने मामले में फैसला तीसरी बार और 20 जनवरी के लिए टाल दिया।
याचिका में कहा गया है कि सीबीआई ने उच्चतम न्यायालय में आठ जनवरी को एक स्थित रिपोर्ट सौंपी थी, जिसमें उसने कहा था कि बालिका गृह की कुछ लड़कियां जीवित हैं, जिनके बारे में यह माना गया था कि उनकी कथित तौर पर हत्या कर दी गई है।
ठाकुर की याचिका अधिवक्ता पी के दूबे और धीरज कुमार के मार्फत दायर की गई है। याचिका में दावा किया गया है कि बालिका गृह यौन उत्पीड़न मामले में अभियोजन के गवाह विश्वसनीय नहीं हैं क्योंकि हत्या के आरोपों की जांच उनके बयानों पर आधारित हैं।
इसमें कहा गया है, ‘‘यह जिक्र करना मुनासिब होगा कि हत्या के आरोपों की जांच पीड़ितों द्वारा दिए गए बयानों पर आधारित थी, जो मामले में अभियोजन के गवाह थे। उन्होंने अदालत के समक्ष आरोपी के समक्ष झूठे आरोप लगाए जिनमें अन्य बातों के साथ-साथ हत्या से जुड़े आरोप भी शामिल हैं।’’
याचिका में यह भी आरोप लगाया गया है कि अभियोजन द्वारा बनाया गया मामला झूठा, काल्पनिक और मनगढ़ंत है।
इसमें कहा गया है, ‘‘इन तथ्यों से यह साबित होता है कि उल्लेख किए गए अभियोजन के गवाह भरोसे लायक नहीं हैं और उन्होंने न सिर्फ जांच एजेंसी बल्कि अदालत को भी गुमराह किया है।’’
अदालत ने पहले आदेश एक महीने के लिए 14 जनवरी तक टाल दिया था। उस समय मामले की सुनवाई कर रहे जज सौरभ कुलश्रेष्ठ छुट्टी पर थे।
इससे पहले अदालत ने नवंबर में फैसला एक महीने के लिए टाल दिया था। तब तिहाड़ केंद्रीय जेल में बंद 20 आरोपियों को राष्ट्रीय राजधानी की सभी छह जिला अदालतों में वकीलों की हड़ताल के कारण अदालत परिसर नहीं लाया जा सका था।
अदालत ने 20 मार्च, 2018 को ठाकुर समेत आरोपियों के खिलाफ आरोप तय किये थे।
अदालत ने अंतिम दलीलें पूरी होने पर 30 सितंबर को अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था। इस मामले में बिहार की पूर्व समाज कल्याण मंत्री मंजू वर्मा को भी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था क्योंकि ये आरोप लगाए गए थे कि ठाकुर का उनके पति से संपर्क था।
मंजू को आठ अगस्त 2018 को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था।
आरोपियों में आठ महिलाएं और 12 पुरुष हैं।
बालिका गृह का संचालक बिहार पीपुल्स पार्टी का पूर्व विधायक ब्रजेश ठाकुर था।
अदालत ने बलात्कार, यौन उत्पीड़न, यौन शोषण, नाबालिगों को नशीली दवाइयां देना, आपराधिक भयादोहन आदि अन्य आरोपों को लेकर सुनवाई की।
ठाकुर और उसके बालिका गृह के कर्मचारियों पर तथा बिहार समाज कल्याण विभाग के अधिकारियों पर आपराधिक साजिश रचने, कर्तव्य निर्वहन में लापरवाही बरतने तथा लड़कियों पर हमले की रिपेार्ट करने में नाकाम रहने के आरोप हैं।
आरोपों में बच्चियों से निर्ममता बरतने के अपराध भी शामिल हैं जो किशोर न्याय अधिनियम के तहत दंडनीय हैं।
इन अपराधों के लिए अधिकतम उम्र कैद की सजा का प्रावधान है।
बंद कमरे में चली मामले की सुनवाई के दौरान सीबीआई ने विशेष अदालत से कहा कि मामले में सभी आरोपियों के खिलाफ पर्याप्त सबूत हैं।
हालांकि, आरोपियों ने दावा किया है कि सीबीआई ने निष्पक्ष जांच नहीं की है।
यह मामला यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पॉक्सो) कानून के तहत दर्ज है और इसमें अधिकतम सजा के रूप में उम्र कैद का प्रावधान है।
यह मामला उच्चतम न्यायालय के निर्देश पर सात फरवरी को बिहार के मुजफ्फरपुर की एक स्थानीय अदालत से दिल्ली में साकेत जिला अदालत परिसर स्थित एक पॉक्सो अदालत को स्थानांतरित किया गया था।
शीर्ष न्यायालय ने बालिका गृह में करीब 30 लड़कियों के कथित यौन उत्पीड़न पर संज्ञान लिया था और इसकी जांच सीबीआई को हस्तांतरित करने का निर्देश दिया था।
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