जयपुर,:: वरिष्ठ कांग्रेस नेता और राजस्थान की पूर्व राज्यपाल मारग्रेट अल्वा ने शनिवार को संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) का तीखा विरोध करते हुए कहा कि यह सभी भारतीयों को प्रदत्त संवैधानिक अधिकारों को नकारता है और जिस न्यायिक व्यवस्था को संविधान की रक्षा और व्याख्या करनी थी, वह विफल रही है।
उन्होंने कहा कि उन्हें आशा थी कि इस मामले पर अदालतें “अधिक सक्रिय और मुखर” होंगी। वह यहां आयोजित जयपुर साहित्य उत्सव में “लोगों का, लोगों के द्वारा: भारतीय संविधान” सत्र को संबोधित कर रही थीं।
उन्होंने कहा, “अब पहचान को धर्म के साथ जोड़ा जा रहा है। मुझे नहीं मालूम कि इसने कैसे और क्यों अपनी जड़ें जमा लीं। हमें बताया गया है कि कुछ लोगों का स्वागत है, कुछ का नहीं। कुछ को स्वतः नागरिकता मिल जाएगी और अन्य को नहीं मिलेगी। मेरे लिए यह सभी भारतीयों को प्रदत्त संवैधानिक अधिकारों को नकारने जैसा है।” देश के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त नवीन चावला और लेखक माधव खोसला के साथ सत्र में अल्वा ने सीएए को लेकर कड़ा रुख दिखाते हुए कहा कि संविधान ने मुझे 1950 में देश का नागरिक बना दिया था और आज मुझसे पूछा जा रहा है कि मैं भारत की नागरिक हूं कि नहीं। अल्वा ने कहा कि क्या मेरे पास प्रमाण नहीं होंगे तो मुझे निरोध केंद्र (डिंटेशन सेंटर) में भेज दिया जाएगा।
उन्होंने कहा कि मैंने लोगों से कहा है कि अगर कोई फार्म भरवाने आए तो उसे फाड़ दो। कोई जानकारी देने की जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकारें इसका विरोध कर रही हैं और मैं राज्य से भी कहूंगी कि वे भी इसका समर्थन न करें।
सत्र में लेखक माधव खोसला ने भी सीएए को असंवैधानिक बताया। खोसला ने कहा कि इसमें जो भेदभाव किया गया है, उसका तर्क समझ नहीं आ रहा है। आखिर इसकी जरूरत क्या है।
सत्र के दौरान अल्वा ने राज्यपालों की भूमिका की समीक्षा की वकालत भी की। उन्होंने कहा कि राजभवनों में आज भी ब्रिटिशकाल की परंपराएं चल रही है, उन पर रोक लगनी चाहिए। संसद और राष्ट्रपति भवन को राज्यपालों की भूमिका की समीक्षा करनी चाहिए। इस दौरान उन्होंने कहा कि यह कहना गलत होगा कि सभी राज्यपाल राजनीतिक दलों के औजार की तरह काम करते है।
उन्होंने इस तर्क के विरोध में अपना उदाहरण दिया। उन्होंने कहा कि उन्हें संप्रग सरकार ने राज्यपाल बनाया था, लेकिन राजग के समय उन्हें अन्य राज्यों का अतिरिक्त प्रभार मिला, गुजरात तक का प्रभार दिया गया। लेकिन यह सही है कि राज्यपाल को निष्पक्ष होना चाहिए।
नवीन चावला ने कहा कि हर सवाल का जवाब संविधान में है और उच्चतम न्यायालय जैसी संस्थाओं में भरोसा रखना चाहिए। देश में सारे बडे चुनाव सुधार न्यायालयों के आदेशों से हुए हैं। यह संसद के जरिए नहीं पाया है। जो भी मामले अदालत में हैं, उनके बारे में हमें उम्मीद नहीं छोडनी चाहिए। उन्होंने अल्वा द्वारा न्यायपालिका की भूमिका को लेकर निराशा जताए जाने को लेकर प्रतिवाद किया और कहा कि सभी संस्थाओं को एक ही नजरिए से नहीं देखना चाहिए। न्यायपालिका ने कई ऐसे फैसले दिए हैं जिनके जरिए बडे चुनाव सुधार हुए जो संसद के जरिए संभव नहीं थे।
चावला ने कहा कि तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद हम एक रह पाए हैं तो उसका सबसे बडा कारण संविधान ही है। इसमें हर सवाल का जवाब है।
चावला ने कहा कि हमारे संविधान निर्माताओं ने व्यापक दृष्टिकोण रखा और बड़ी बारीकी से इसका निर्माण किया। बिना किसी भेदभाव के हर किसी को मताधिकार दिया। चुनाव आयोग ने हर बार निष्पक्ष चुनाव कराए और हमारे राजनीतिक दलों ने जनता के निर्णय को हमेशा स्वीकार किया, जो दुनिया के कई देशों में नहीं हुआ है। उन्होंने कहा कि देश के किसी भी कार्ड से बडा कार्ड मतदाता पहचान पत्र है। मैं इसे आधार से भी ज्यादा महत्वपूर्ण मानता हूं।
इसी समारोह में “संस्कृति और लचीलेपन” सत्र को संबोधित करते हुए वरिष्ठ जदयू नेता पवन वर्मा ने कहा कि हमारे पूर्वजों की विचारधारा के अनुरूप संविधान में जो स्वतंत्रता हमें दी गयी है वह हमारी ताकत है और कोई भी शक्ति उसे हमसे छीन नहीं सकती।
उन्होंने कहा कि संस्कृति के सरकारी ‘संस्करण’ और लोगों के मन में जीवित सदियों पुरानी संस्कृति में जंग छिड़ी हुई है जिसके अनुसार केवल नफरत ही भारत की पहचान नहीं है।
वर्मा ने कहा कि जो लोग सार्वजनिक रूप से जय श्री राम का नारा लगाकर दूसरों की हत्या कर रहे हैं उन्हें अपनी सांस्कृतिक जड़ों की जानकारी नहीं है।
साहित्य उत्सव में सुपरमॉडल और अभिनेत्री लीजा रे ने भी अपने विचार रखे जिनकी कैंसर से लड़ाई का विवरण एक पुस्तक के रूप में प्रकाशित हुआ है।
रे ने कहा कि वास्तव में पुस्तकों ने ही उन्हें जीवन के सबसे कठिन दौर से गुजरने में सहायता की।
उन्होंने कहा कि उन्होंने रूसी लेखक फ्योदोर दोस्तोवस्की से लेकर सलमान रुश्दी और मार्ग्रेट अटवुड तक प्रख्यात लेखकों को तन्मयता से पढ़ा।
रे ने पीटीआई-भाषा से कहा, “पुस्तकों ने मुझे जीवन के सबसे कठिन दौर से निकालने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई। मैंने प्रचुर मात्रा में तन्मन्यता से पढ़ाई की। मैंने दोस्तोवस्की जैसे रूसी लेखकों को पढ़ा। मैंने सलमान रुश्दी और मार्ग्रेट अटवुड को भी खूब पढ़ा।”
अपनी पुस्तक “क्लोज टू द बोन” के बारे में उन्होंने कहा कि वह एक संस्मरण नहीं बल्कि एक “यात्रा वृत्तांत है जिसमें आत्मा है।”
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