श्रीनगर, : कश्मीर में इंटरनेट पर लगी रोक को लेकर शुक्रवार को उच्चतम न्यायालय की उस टिप्पणी से घाटी के लोगों को राहत मिली है कि इंटरनेट तक पहुंच लोगों का एक मौलिक अधिकार है। घाटी के कई लोगों ने इसे खुशखबरी बताते हुए उम्मीद जताई है कि जल्द ही इंटरनेट सेवाएं बहाल हो जाएंगी।
पांच महीने पहले पांच अगस्त को जब जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को रद्द कर दिया गया और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों- जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में विभाजित किया गया, तब से वहां इंटरनेट सेवाओं पर रोक है।
उच्च्तम न्यायालय ने शुक्रवार को अपने एक महत्त्वपूर्ण फैसले में संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत इंटरनेट के इस्तेमाल को एक मौलिक अधिकार करार देते हुये जम्मू-कश्मीर प्रशासन को केंद्र शासित प्रदेश में प्रतिबंध लगाने के सभी आदेशों की एक हफ्ते में समीक्षा करने का आदेश दिया।
शहर के लाल चौक इलाके के एक व्यवसायी इश्तियाक अहमद ने कहा, ‘‘यह हमारे लिए बहुत ही बड़ी खुशखबरी है, एक बड़ी राहत है, क्योंकि इंटरनेट पांच महीनों से निलंबित है। हमें वास्तव में उम्मीद है कि अब जल्द से जल्द सेवाएं फिर से शुरू की जाएंगी।’’ उन्होंने कहा कि 5 अगस्त के बाद से कश्मीर में व्यापार बुरी तरह प्रभावित हुआ है।
घाटी में पर्यटन क्षेत्र से जुड़े एक अन्य व्यवसायी उम्मीद कर रहे हैं कि इंटरनेट पर निर्भर व्यवसाय को इससे बहुत बड़ी राहत मिलेगी।
उन्होंने कहा, “यह उस क्षेत्र को बढ़ावा देगा जो इंटरनेट पर अत्यधिक निर्भर है। इस क्षेत्र में सब कुछ इंटरनेट सेवाओं पर पूरी तरह से निर्भर रहता है।’’
शहर के बाहरी इलाके में रहने वाला एक छात्रा आफरीन मुश्ताक ने कहा कि इंटरनेट प्रतिबंध का सबसे अधिक प्रभाव छात्र समुदाय पर पड़ा है और देर से ही सही, शीर्ष अदालत की आलोचना हमारे लिए राहत की बात है। हमारे लिए यह खुले हवा में सांस लेने जैसा है।
श्रीनगर के एक पत्रकार ने कहा कि उच्च्तम न्यायालय ने सही कहा है कि इंटरनेट का उपयोग एक मौलिक अधिकार है, जिसे रोका नहीं जा सकता है।
इसके साथ ही उन्होंने उम्मीद जतायी कि मीडिया संगठनों के लिए यह सेवाएं बहाल की जाएंगी ताकि वे स्वतंत्र रूप से काम कर सकें।
वक़्फ़ संशोधन बिल के विरोधियों को लखनऊ पुलिस द्वारा भेजा गया नोटिस असंवैधानिक, सुप्रीम कोर्ट ले एक्शन- शाहनवाज़ आलम
नयी दिल्ली, 11 अप्रैल 2025 . कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव शाहनवाज़ आलम ने उत्तर प्रदेश पुलिस पर वक़्फ़ संशोधन विधेयक के खिलाफ विचार रखने वाले नागरिकों के संविधान प्रदत्त अभिव्यक्ति की आज़ादी और विरोध करने के मौलिक अधिकारों के हनन करने का आरोप लगाया है. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से अपने फैसलों की अवमानना पर स्वतः संज्ञान लेकर दोषी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ़ कार्यवाई की मांग की है. शाहनवाज़ आलम ने जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा है कि लखनऊ के कई नागरिकों को लखनऊ पुलिस द्वारा उनकी तरफ से वक़्फ़ संशोधन विधेयक के खिलाफ़ होने वाले संभावित प्रदर्शनों में शामिल होने का अंदेशा जताकर उन्हें नोटिस भेजा गया है. जबकि अभी नागरिकों की तरफ से कोई विरोध प्रदर्शन आयोजित हुआ भी नहीं है. सबसे गम्भीर मुद्दा यह है कि इन नोटिसों में नागरिकों को अगले एक साल तक के लिए उनसे शांति भंग का खतरा बताते हुए 50 हज़ार रुपये भी जमा कराने के साथ इतनी धनराशि की दो ज़मानतें भी मांगी जा रही हैं. शाहनवाज़ आलम ने कहा कि यूपी पुलिस यह कैसे भूल सकती है कि उसकी यह कार्यवाई संविधान के अनुच्छेद 19 का उल्लंघन है जो नागर...
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