लखनऊ : समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा है कि भाजपा को भटकाव की राजनीति में महारत हासिल है। उत्तर प्रदेश में जनता परेशानियों से जूझ रही है। मंहगाई, बेकारी और बिगड़ी कानून व्यवस्था का दूसरा नाम उत्तर प्रदेश बनता जा रहा है। सीएए के विरोध में जगह-जगह आक्रोश की आग सुलग रही है। महिलाएं चैका चूल्हा छोड़कर मैदान में उतर आई हैं। विकास ठप्प है। प्रदेश की भाजपा सरकार और मुख्यमंत्री जी को इन सबकी परवाह नहीं, वे खेल तमाशों में और भव्य आयोजनों में व्यस्त हैं।
भाजपा सरकार के पूरे तीन साल तरह-तरह के लोकार्पण, महोत्सवों के आयोजनों में ही बीत गए हैं। उनका अपना तो कुछ काम हुआ नहीं, समाजवादी सरकार के कामों को ही अपना बताते रहे। उनकी सरकार ‘इवेंट मैनेजमेंट कमेटी‘ बन गई है जिसने अब ‘गंगा यात्रा‘ का नया ‘इवेंट‘ ईजाद कर लिया है। वैसे यह कोई नई बात नहीं है। प्रधानमंत्री जी तो गंगा मइया के बुलावे पर ही आए हैं जिन्होंने नमामि गंगे के नाम पर गंगा सफाई के लिए खजाना खोल दिया परन्तु गंगा मैली की मैली ही बनी हुई है। नदी सफाई की सुनियोजित व्यवस्था बनी नहीं। नालों का गिरना बंद नहीं हुआ। दिखावे के लिए ही ये अभियान चलाए गए हैं।
अब मुख्यमंत्री जी ने अपनी गंगा यात्रा में 56 राज्य मंत्रियों को लगा दिया है। केन्द्रीय मंत्री भी इसमें शामिल हैं। प्रदेश में गंगा की लम्बाई 1140 किली मीटर है और गंगा यात्रा 1338 किमी. चलेगी। मुख्यमंत्री जी इस यात्रा को गंगा की सफाई से जोड़ते हैं जबकि इसकी सच्चाई एक केन्द्रीय मंत्री ने इसे ‘अर्थ गंगा‘ बताकर खोल दी है। गंगा मइया के प्रति आस्था का झूठा प्रदर्शन कर बजट को खुर्द बुर्द करना ही इसका असल मकसद है।
गंगा मइया के नाम पर धोखे का यह धंधा 1985 से चला था जो सन् 2000 में बंद हुआ। 15 साल में 900 करोड़ खर्च हुए। सन् 2014 में भाजपा फिर गंगा सफाई में जुट गई। निर्मल गंगा के लिए कइयों ने अपनी जानें दे दीं। भाजपा की तब संवेदना नहीं जागी। अब इस नए ‘इवेंट‘ के लिए यही कहा जा सकता है कि डबल इंजन सरकारें भी बहकाने में लग गई है। भाजपा की गंगा यात्रा से गंगा किनारे और नदी से आजीविका कमाने वालों को कोई लाभ होने वाला नहीं है। गंगा किनारे ज्यादातर मछुआरा समाज के लोग रहते है। समाजवादी सरकार ने 17 अति पिछड़ी जातियों कश्यप, निषाद, बिंद, मल्लाह, केवट, कहार, गोंड, मांझी, राजभर, प्रजापति आदि को अनुसूचित जाति में रखने का काम किया था। भाजपा सरकार ने ठीक से हाईकोर्ट में पैरवी न करके इनका आरक्षण रूकवा दिया। यह भाजपाइयों की गरीब केवट समाज के साथ हमदर्दी का दिखावा भर हैं।
भाजपा को गंगा यात्रा के पहले जो गांव नदी कटान में उजड़ गए उनको मुआवजा देना चाहिए। गांव के किनारे तटबंध चाहिए। दबंगों ने कश्यप समाज की गंगा किनारे जमींने कब्जा ली हैं उन्हें खाली कराएं। भाजपा ने गंगा किनारे रेत पर ककड़ी, खीरा, तरबूज आदि उगाने वालों के लिए कुछ नहीं किया। नाव चलाकर आजीविका कमाने वालों के लिए भी भाजपा के पास कोई योजना नहीं। सच तो यह है कि भाजपा की नीतियों से गंगा किनारे रहने वाले गरीबों, किसानों, केवट समाज के लोगों की परेशानियों में इजाफा ही हुआ है। वाराणसी के घाटों पर सरकारी क्रूज चलाकर नाविकों को बेरोजगार कर दिया गया है। नदी किनारे गोताखोरों का सिर्फ शोषण ही होता आया है।
मुख्यमंत्री जी ने बिजनौर से गंगा यात्रा की शुरूआत कर एक तरह से स्थानीय लोगों के जले पर नमक छिड़कने और अपनी सरकार का घमण्ड दिखाने का ही काम किया है। जनपद बिजनौर ग्राम देवलगढ़ राजा रामपुर गांव में दो लोग गंगा में डूबकर मर गए। स्थानीय लोग डेढ़ माह तक गंगा में खड़े होकर मृतकों को मुआवजा और गंगा पर पुल की मांग करते रहे। जनपद बिजनौर के ग्राम फतेहपुर ब्लाक मोहम्मदपुर देवल में पूरा गंाव बाढ़ में कट गया। लोग झुग्गी-झोपड़ी डालकर रह रहे हैं। इनको न आवास मिला न मुआवजा। स्पष्ट है भाजपा सरकार और मुख्यमंत्री जी सिर्फ सत्ता पर काबिज रहने की ही जुगत में हैं। जनता को भ्रमित करने की इन साजिशों को अब लोग पहचानने लगे हैं।
वक़्फ़ संशोधन बिल के विरोधियों को लखनऊ पुलिस द्वारा भेजा गया नोटिस असंवैधानिक, सुप्रीम कोर्ट ले एक्शन- शाहनवाज़ आलम
नयी दिल्ली, 11 अप्रैल 2025 . कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव शाहनवाज़ आलम ने उत्तर प्रदेश पुलिस पर वक़्फ़ संशोधन विधेयक के खिलाफ विचार रखने वाले नागरिकों के संविधान प्रदत्त अभिव्यक्ति की आज़ादी और विरोध करने के मौलिक अधिकारों के हनन करने का आरोप लगाया है. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से अपने फैसलों की अवमानना पर स्वतः संज्ञान लेकर दोषी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ़ कार्यवाई की मांग की है. शाहनवाज़ आलम ने जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा है कि लखनऊ के कई नागरिकों को लखनऊ पुलिस द्वारा उनकी तरफ से वक़्फ़ संशोधन विधेयक के खिलाफ़ होने वाले संभावित प्रदर्शनों में शामिल होने का अंदेशा जताकर उन्हें नोटिस भेजा गया है. जबकि अभी नागरिकों की तरफ से कोई विरोध प्रदर्शन आयोजित हुआ भी नहीं है. सबसे गम्भीर मुद्दा यह है कि इन नोटिसों में नागरिकों को अगले एक साल तक के लिए उनसे शांति भंग का खतरा बताते हुए 50 हज़ार रुपये भी जमा कराने के साथ इतनी धनराशि की दो ज़मानतें भी मांगी जा रही हैं. शाहनवाज़ आलम ने कहा कि यूपी पुलिस यह कैसे भूल सकती है कि उसकी यह कार्यवाई संविधान के अनुच्छेद 19 का उल्लंघन है जो नागर...
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