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बहुविवाह और निकाह हलाला के खिलाफ लंबित मामले में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड पक्षकार बनने पहुंचा न्याालय

नयी दिल्ली, : :  मुस्लिम समुदाय में प्रचलित बहुपत्नी प्रथा और ‘निकाह हलाला’ की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं में पक्षकार बनने के लिये ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने सोमवार को उच्चतम न्यायालय में आवेदन दायर किया।


बहुविवाह और निकाह हलाला प्रथा को असंवैधानिक घोषित कराने के लिये शीर्ष अदालत में मुस्लिम महिलाओं की याचिकाओं का विरोध करने के लिये मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने यह आवेदन दायर किया है।


शीर्ष अदालत ने दिल्ली निवासी नफीसा खान की याचिका पर मार्च 2018 में कानून मंत्रालय और अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय के साथ ही राष्ट्रीय महिला आयोग को नोटिस जारी करने के साथ ही कहा था कि इस मामले पर पांच सदस्यीय संविधान पीठ विचार करेगी। इस महिला ने अपनी याचिका में बहुविवाह और निकाह हलाला प्रथा को चुनौती दी थी।


बहुविवाह प्रथा मुस्लिम व्यक्ति को चार बीवियां रखने की इजाजत देता है जबकि ‘निकाह हलाला’ का संबंध पति द्वारा तलाक दिये जाने के बाद यदि मुस्लिम महिला उसी से दुबारा शादी करना चाहती है तो इसके लिये उसे पहले किसी अन्य व्यक्ति से निकाह करना होगा और उसके साथ वैवाहिक रिश्ता कायम करने के बाद उससे तलाक लेने से है।


शीर्ष अदालत में एक ही बार में तीन तलाक देने की प्रथा के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान मुस्लिम समाज में प्रचलित बहुविवाह और निकाह हलाला प्रथा के मुद्दे भी उठे थे। शीर्ष अदालत की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने 22 अगस्त 2017 को 3:2 के बहुमत से सुन्नी समाज में प्रचलित तीन तलाक की प्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया था। न्यायालय ने कहा था कि यह पवित्र कुरान के बुनियादी सिद्धांतों के खिलाफ है और यह शरियत का उल्लंघन करती है।


शीर्ष अदालत ने उसी समय यह स्पष्ट कर दिया था कि बहुविवाह और निकाह हलाला के मुद्दों पर अलग से बाद में विचार किया जायेगा।


मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने अपने आवेदन में कहा है कि शीर्ष अदालत पहले ही 1997 में अपने फैसले में बहुविवाह और ‘निकाह हलाला’ के मुद्दे पर गौर कर चुकी है जिसमें उसने इसे लेकर दायर याचिकाओं पर विचार करने से इनकार कर दिया था।


मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने अपने आवेदन में कहा है कि पर्सनल लॉ को किसी कानून या अन्य सक्षम प्राधिकारी द्वारा बताए जाने की वजह से वैधता नहीं मिलती है। इन कानूनों का मूल स्रोत उनके धर्मग्रंथ हैं।


आवेदन में कहा गया है कि मुस्लिम लॉ मूल रूप से पवित्र कुरान और हदीस (मोहम्मद साहब की शिक्षाओं) पर आधारित है। अत: यह संविधान के अनुच्छेद 13 में उल्लिखित ‘लागू कानून’ के भाव के दायरे में नहीं आता है। इसलिए इनकी वैधता का परीक्षण नहीं किया जा सकता।


बोर्ड ने अपनी अर्जी में कहा है कि संविधान के अनुच्छेद 44 में प्रावधान है कि देश भर में नागरिकों के लिये समान नागरिक संहिता बनाने का प्रयास किया जायेगा लेकिन यह शासकीय नीति का निर्देशित सिद्धांत है और यह लागू करने योग्य नहीं है।


बोर्ड ने कहा है कि इन्हीं प्रथाओं को शीर्ष अदालत में पहले भी चुनौती दी गयी थी और न्यायालय ने 1997 में अहमदाबाद वुमेन एक्शन ग्रुप बनाम भारत सरकार में अपने फैसले में इस मामले पर विचार करने से इंकार कर दिया था। न्यायालय ने कहा कि इन पर न्यायपालिका नहीं बल्कि विधायिका विचार करेगी। बोर्ड क अनुसार मुस्लिम महिला (तलाक होने पर अधिकारों का संरक्षण) कानून, 1986 से मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों को संरक्षण प्राप्त है।


मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने भाजपा नेता एवं अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय द्वारा जनहित याचिका दायर करने के औचित्य पर सवाल उठाया है। बोर्ड ने कहा है कि उसका मानना है कि आमतौर पर एक धर्म के व्यक्ति को दूसरे धर्म की आस्था के बारे में सवाल उठाने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।


नफीसा खान ने 14 मार्च, 2018 को शीर्ष अदालत में दायर याचिका में कहा था कि मुस्लिम पर्सनल लॉ की वजह से भारतीय दंड संहिता की धारा 494 (पति या पत्नी के जीवनकाल में ही दूसरी शादी करना) इस समुदाय पर लागू नहीं हो रहा है और किसी भी मुस्लिम महिला के पास बहुविवाह के अपराध के लिये अपने पति के खिलाफ शिकायत दायर करने का उपाय नहीं है।


नफीसा खान ने मुस्लिम विवाह विच्छेद कानून, 1939 को असंवैधानिक और संविधान के अनुच्देद 14, 15, 21 और 25 में प्रदत्त अधिकारों का हनन करने वाला घोषित करने का अनुरोध किया। याचिका के अनुसार यह कानून भारतीय मुस्लिम महिलाओं को बहुविवाद के दंश से संरक्षण प्रदान नहीं करता जो भारत के दूसरे धर्मो की महिलाओं को कानूनी रूप से प्रदान करता है।


याचिकाकर्ता का दावा है कि वह खुद इन प्रथाओं की शिकार है। याचिका में आरोप लगाया गया है कि उसका पति और उसके परिवार के सदस्य दहेज की खातिर उसे यातनाएं देते हैं और दो बार उसे ससुराल से बेदखल किया जा चुका है।


नफीसा खान ने यह भी आरोप लगाया था कि उसके पति ने कानूनी रूप से तलाक लिये बगैर ही दूसरी महिला से शादी कर ली और पुलिस ने भी भारतीय दंड संहिता की धारा 494 तथा 498ए के तहत उसके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने से इंकार कर दिया।


शीर्ष अदालत ने कोलकाता की मुस्लिम महिला प्रतिरोध समिति को भी इस मामले में पक्षकार बनाने के लिये आवेदन दाखिल करने की अनुमति दे दी थी।


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