सीकर जिला परिषद चुनाव मे कांग्रेस भी कभी मुस्लिम को उम्मीदवार बनाने का साहस दिखायेगी?

सीकर।
               नये साल की शूरुआत मे प्रदेश के साथ साथ सीकर जिले मे भी पंचायत चुनाव होने वाले है। जिन चुनाओ के तहत सीकर जिले की उनचालीस जिला परिषद वार्डों मे से किसी एक-दो सीट से कांग्रेस पार्टी मुस्लिम को उम्मीदवार बनाने का साहस अपना परम्परागत वोटबैंक होने के बावजूद दिखा पायेगी या फिर वही मिठ्ठी गोली देकर बहाना तलासा जायेगा कि मुस्लिम जीत नही पाता है।
                  हालांकि शेखावटी के चूरु जिले मे कांग्रेस ने एक दफा एक मात्र हुसैन सैयद को जिला परिषद सदस्य के लिये उम्मीदवार बनाया वही झूंझुनू जिला परिषद सदस्य के लिये कांग्रेस ने अब तक एक मात्र खलील बूढाना को उम्मीदवार बनाया। जिसमे सैयद विजयी नही हो पाये लेकिन बूढाना चुनाव जीतने मे कामयाब रहे। वही चूरु जिला परिषद सदस्य के लिये पूरे शेखावटी जनपद मे भाजपा ने एक दफा एक मात्र रफीक खान को उम्मीदवार बनाया। रफीक खान वो चुनाव जीते एवं जीतकर उप जिलाप्रमुख भी बने थे।
                चूरु व झूंझुनू के मुकाबले सीकर के मुस्लिम समुदाय का दूर्भाग्य रहा कि उनके मतो की ताकत के बलपर मुस्लिम बहुल सीट पर अधीकांश कांग्रेस नेता जीत पक्की मानकर टिकट पाने का जुगाड़ तो करते रहे लेकिन किसी एक ने भी उनचालीस वार्डो मे से एक भी वार्ड से मुस्लिम को उम्मीदवार बनाने की वकालत कांग्रेस मे मजबूती से अभी तक नही की है। जिसका परिणाम यह आता रहा है कि आज तक वोटबैंक होने के बावजूद कांग्रेस ने किसी एक मुस्लिम को भी जिला परिषद सदस्य के चुनाव मे उम्मीदवार बनाने का साहस नही दिखाया है। इसके विपरीत कम राजनीतिक प्रभाव वाली वामपंथी पार्टी माकपा ने समय समय पर मुस्लिम को जिला परिषद सदस्य के चुनाव मे उम्मीदवार बनाया। जिसमे से वार्ड-38 से माकपा की नाजमीन खान चुनाव जीतकर वर्तमान मे सीकर जिला परिषद की सदस्य है। जो सीकर जिला परिषद की अब तक की पहली मुस्लिम सदस्य है।
                कुल मिलाकर यह है कि मुस्लिम समुदाय को वोटबैंक की तरह उपयोग करने वाली कांग्रेस पार्टी आगामी पंचायत चुनाव मे सीकर जिला परिषद सदस्य चुनाव मे किसी मुस्लिम को उम्मीदवार बनाने का साहस दिखाती है या फिर परिणाम हमेशा की तरह वोही ढाक के तीन पात आते है। इसके विपरीत माकपा द्वारा एक या दो को जिला परिषद सदस्य चुनाव मे मुस्लिम को उम्मीदवार बनाने की सम्भावना जताई जा रही है। साथ ही मुस्लिम समुदाय की युवा पीढी राजनीति मे अब गिवन-टेक व टेक्निकल वोटिंग की तरह अलग रुप से भी सोचने लगी है।


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