योम ए वफात पर याद किये गए जॉन एलिया


अमरोहा। जॉन एलिया के योम ए वफात पर बज्म ए जिन्दा दिलान ए अमरोहा की जनिब से हाशमी कॉलेज में एक प्रोग्रम आयोजित किया गया  सदारत हाशमी एजुकेशनल ग्रुप के चेयरमैन डॉ० सिराजुद्दीन हाशमी तथा संचालन युवा शायर सै. शीबान कादरी ने की। जॉन एलिया के योमे वफात पर उनको खिराज ए अकीदत पेश किया गया। जॉन एलिया पर अपनी पीएचडी मुकम्मल करने वाली डॉ नेहा इकबाल ने कहा कि जॉन एलिया उर्दू शायरी की महफिल का एक बहुत बड़ा नाम हैं। उनके लिखे शेरों को पढ़कर यह लगता है कि उन्होंने खुद को इश्क में इस कदर आबाद कर लिया था कि आज तक की पीढि़यों में भी जॉन की मकबूलियत बरकरार है।

डॉ.  हाशमी ने कहा की उर्दू के गुलशन में कई जादुई खुशबू वाले फूल महके हैं। ऐसे ही एक मकबूल फूल को दुनिया ने शायर जौन एलिया के नाम से जाना.जनाब के कहे शेर आज भी उर्दू अदब का बड़ा हिस्सा हैं। सै. कादरी ने कहा कि जॉन एलिया एक ऐसा शायर जिसने दुनिया को शायरी के एक नए ढंग से रुशनास कराया और लफ्जों को एक नया पैरहन आता कर के लोगों को हैरान कर दिया। जॉन एलिया की शायरी की एक बड़ी खूबी यह थी कि वह अपने महबूब से बराए रास्त मुखातिब होना पसन्द करते थे। उन्होंने दूसरे शायरों की तरह बादलों, हवाओं और फूलों व खुशबू को जरिया ए खिताबत बनाने से परहेज किया है। तल्ख हालात हों और अपनी तबियत और एहसास का इजहार करना हो तो उन्होंने अपने महबूब को हमेशा अपने सामने रख कर बात की और वो भी बिल्कुल मुख्तलिफ अंदाज में। डॉ0 नोशाबा परवीन ने कहा आज जॉन साहिब को इस दार ए फानी से विदा हुऐ 17 साल मुकम्मल हो चुके हैं लेकिन अपनी शायरी के जरिए वो हमारे दरमियान जिंदा हैं। इस मौके पर आदिल रशीद,असलम बकाई,नासिर अमरोहवी,नूर मोहम्मद,सलमान अब्बासी के अलावा बड़ी तादाद में लोग मौजूद रहे।

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