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निर्वाचित पार्षदो की राजनीतिक दलो द्वारा बाड़ेबंदी करने को स्वच्छ लोकतंत्र कैसे कहा जा सकता है

जयपुर:  हालांकि राजस्थान मे हाल ही मे हुये स्थानीय निकाय चुनाव मे चुने गये वार्ड पार्षदों के बाद 26- नवम्बर को मेयर/सभापति व चेयरमैन चुने जाने के लिये मतदान होना है। जिसके लिये राजनीतिक दलो द्वारा अपने अपने पार्षदो को स्वतंत्र रहकर मतदान करने की छूट देने के बजाय उनकी बाड़ाबंदी करके उनको उस क्षेत्र से दूर लेजाकर उनको एक थोपी गई मंशा के पक्ष मे मतदान करने के लिए मजबूर करने मे किसी दल को पीछे नही माना जा रहा है। ऐसी दशा को स्वच्छ लोकतंत्र कैसे माना जा सकता है।
               राजस्थान के उनचास स्थानीय निकाय चुनाव मे पार्षदों के चुने जाने के बाद सभापति के लिये मतदान होने से पहले भरतपुर की रुपवास व नागौर की मकराना नगरपालिका मे बबीता व समरीन नामक महिलाओं के निर्विरोध चेयरमैन चुने जाने के अलावा अलवर के भाजपा पार्षद बाड़ेबंदी से तीन निर्दलीयों पार्षदो को केम्प से कांग्रेस जनो द्वारा जबरदस्ती भगा ले जाने की अखबारों की सूर्खियों के बाद कांग्रेस-भाजपा ने अपने दलो के बने बाड़ेबंदी केम्प की सुरक्षा को कड़ी व अति गोपनीय बना लिया है। 24-नवम्बर को सीकर नगरपरिषद के निर्वाचित कांग्रेस पार्षदो को पुष्कर की बाड़ेबंदी से गुपचुप तरिके से कड़ी निजी सुरक्षा मे उनके मोबाइल जब्त करके इतवार को छुट्टी के दिन सीकर परिषद कार्यालय लाकर उन्हें शपथ व सर्टिफिकेट दिलवाकर तूंरंत बाड़ेबंदी मे लेजाकर बंद करने से लगता है कि हर दल अपने पार्षदो को मतदान तक पूरी तरह बीना किसी से सम्पर्क कराये अपनी कड़ी निगरानी मे रखने मे किसी तरह की कसर नही रखना चाहते है।
               राजस्थान के निर्वाचित पार्षदों की बाड़ेबंदी पर उठ रहे सवालो के मध्य महाराष्ट्र मे रातोंरात सरकार गठित होने पर मचे बवाल के बाद वहां के राजनीतिक दलो द्वारा अपने अपने विधायकों की बाड़ेबंदी करने से लगता है कि स्वच्छ लोकतंत्र के नाम पर ऊपर से नीचे तक पूरे कुऐं मे भांग पड़ी हुई है। महाराष्ट्र मे आवैसी के मात्र दो विधायक है जो किसी तरह की बाड़ेबंदी से कोसो दूर है। जो फ्लोर टेस्ट मे अहम भूमिका निभा सकते है।
                     कुल मिलाकर यह है कि 26-नवम्बर को राजस्थान के उनचास स्थानीय निकाय मे मेयर/सभापति व चेयरमैन के लिये होने वाले मतदान से पहले राजनीतिक दलो ने अपने अपने निर्वाचित पार्षदो व समर्थक निर्दलीय पार्षदो की बाड़ेबंदी को मजबूत कर दिया है। बाड़ेबंदी मे मोजूद पार्षदो का अन्य किसी से सम्पर्क ना हो उसके लिये उनके मोबाईल भी मतदान के समय तक जब्त कर लिये बताते है। इन सब से साफ झलकता है कि राजनीतिक दलो को अपने चुने गये प्रतिनिधियों पर भी भरोसा नही रहा। दूसरी तरफ राजनीतिक जानकर उक्त उनचास स्थानीय निकाय मे से बत्तीस या तैतीस बोर्ड मुखिया कांग्रेस के निर्वाचित होने की मान कर चल रहे है।


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