नयी दिल्ली, : उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को निर्वाचन आयोग से कहा कि आपराधिक रिकार्ड वाले व्यक्तियों को पार्टी टिकट देने से राजनीतिक दलों को रोकने के बारे में पेश प्रतिवेदन पर सुविचारित आदेश पारित करे।
प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे और न्यायमूर्ति बी आर गवई की पीठ ने भाजपा नेता और अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय की जनहित याचिका पर विचार करने से इंकार करते हुये यह आदेश दिया।
उपाध्याय ने याचिका में निर्वाचन आयोग को ऐसी व्यवस्था करने का निर्देश देने का अनुरोध किया था जिससे कि राजनीतिक दलों को आपराधिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों को चुनाव में अपना उम्मीदवार बनाये जाने से रोका जा सके।
पीठ ने अपने आदेश में कहा, ''हम निर्वाचन आयोग को निर्देश देते हैं कि याचिकाकर्ता (उपाध्याय) के 22 जनवरी, 2019 के प्रतिवेदन पर तीन महीने के भीतर विचार करे और इस संबंध में विस्तृत आदेश पारित करे।''
शीर्ष अदालत ने इसी तरह की एक अन्य जनहित याचिका का 21 जनवरी को निस्तारण करते हुये याचिकाकर्ता को निर्वाचन आयोग के समक्ष प्रतिवेदन देने का निर्देश दिया था। न्यायालय ने आयोग से भी कहा था कि इस बारे में उचित कदम उठाने के लिये याचिका को ही प्रतिवेदन माना जाये।
उपाध्याय का आरोप था कि निर्वाचन आयोग ने कोई कार्रवाई नहीं की और इसी वजह से उन्हें नयी याचिका दायर करनी पड़ी।
उपाध्याय ने याचिका में निर्वाचन आयोग को यह निर्देश देने का भी अनुरोध किया था कि वह राजनीतिक दलों को गंभीर अपराधों में संलिप्त व्यक्तियों को उम्मीदवार बनाने से रोके।
याचिका में कहा गया था कि एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफार्म्स द्वारा प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार भारत में राजनीति के अपराधीकरण में वृद्धि हुयी है और 24 फीसदी सांसदों के खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैं।
याचिका के अनुसार लोकसभा के 2009 के चुनावों में 7,810 प्रत्याशियों का विश्लेषण करने पर पता चला कि इनमें से 1,158 या 15 फीसदी ने अपराधिक मामलों की जानकारी दी थी। इन प्रत्याशियों में से 610 या आठ फीसदी के खिलाफ गंभीर अपराध के मामले दर्ज थे। इसी तरह, 2014 में 8,163 प्रत्याशियों में से 1398 ने अपराधिक मामलों की जानकारी दी थी और इसमें से 889 के खिलाफ गंभीर अपराध के मामले लंबित थे।
वक़्फ़ संशोधन बिल के विरोधियों को लखनऊ पुलिस द्वारा भेजा गया नोटिस असंवैधानिक, सुप्रीम कोर्ट ले एक्शन- शाहनवाज़ आलम
नयी दिल्ली, 11 अप्रैल 2025 . कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव शाहनवाज़ आलम ने उत्तर प्रदेश पुलिस पर वक़्फ़ संशोधन विधेयक के खिलाफ विचार रखने वाले नागरिकों के संविधान प्रदत्त अभिव्यक्ति की आज़ादी और विरोध करने के मौलिक अधिकारों के हनन करने का आरोप लगाया है. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से अपने फैसलों की अवमानना पर स्वतः संज्ञान लेकर दोषी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ़ कार्यवाई की मांग की है. शाहनवाज़ आलम ने जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा है कि लखनऊ के कई नागरिकों को लखनऊ पुलिस द्वारा उनकी तरफ से वक़्फ़ संशोधन विधेयक के खिलाफ़ होने वाले संभावित प्रदर्शनों में शामिल होने का अंदेशा जताकर उन्हें नोटिस भेजा गया है. जबकि अभी नागरिकों की तरफ से कोई विरोध प्रदर्शन आयोजित हुआ भी नहीं है. सबसे गम्भीर मुद्दा यह है कि इन नोटिसों में नागरिकों को अगले एक साल तक के लिए उनसे शांति भंग का खतरा बताते हुए 50 हज़ार रुपये भी जमा कराने के साथ इतनी धनराशि की दो ज़मानतें भी मांगी जा रही हैं. शाहनवाज़ आलम ने कहा कि यूपी पुलिस यह कैसे भूल सकती है कि उसकी यह कार्यवाई संविधान के अनुच्छेद 19 का उल्लंघन है जो नागर...
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