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भारतीय संविधान ‘‘लोकतंत्र की सबसे पवित्र पुस्तक - डा0 निर्मल


लखनऊ,  भारतीय संविधान लोकतंत्र की सबसे पवित्र पुस्तक है, यह उद्गार आज डाॅ0 आंबेडकर महासभा द्वारा आयोजित संविधान दिवस कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश अनुसूचित जाति वित्त एवं विकास निगम के अध्यक्ष तथा प्रख्यात दलित चिन्तक डाॅ0 लालजी प्रसाद निर्मल ने व्यक्त किये।  डाॅ0 निर्मल ने कहा कि भारतीय संविधान के मुख्य शिल्पी बाबा साहेब डाॅ0 भीमराव आंबेडकर ही थे।  उन्होंने कहा कि 30 अगस्त, 1947 को संविधान की प्रारूप समिति गठित हुई थी जिसमें श्री अल्लादि कृष्णा स्वामी अय्यर, श्री एन0गोपाल स्वामी आयंगर, श्री के0एम0मुंशी, सैय्यद मुहम्मद शादुल्ला, श्री वी0एन0मूर्ति, श्री डी0पी0खेतान और डाॅ0 बी0आर0 आंबेडकर सम्मिलित थे।


संविधान सभा के सदस्य  टी0टी0कृष्णामाचारी ने 05 नवम्बर, 1947 को संविधान सभा में अपने भाषण में डाॅ0 आंबेडकर की प्रसंशा करते हुए कहा कि प्रारूप समिति के 7 सदस्यों में एक की मृत्यु हो गयी और दूसरे सदस्य अमेरिका में रहते रहे, एक अन्य सदस्य अपने राजप्रबन्ध की समस्याओं में उलझे रहे तथा 1 या 2 सदस्य दिल्ली से बहुत दूर रहे और स्वास्थ्य संबंधी कारणों से वे इस कार्य में भाग नहीं ले सके।  इस प्रकार संविधान का प्रारूप तैयार करने में डाॅ0 आंबेडकर अकेले ही लगे रहे और उन्होंने इस कार्य को प्रसंशनीय ढंग से निभाया। संविधान सभा के एक अन्य सदस्य डा0 बी0 पट्टाभी सीतारमैया ने कहा कि डाॅ0 आंबेडकर इस देश के उच्च स्तर के देशभक्तों में हैं और वह संसार के कानून और संविधान के ज्ञाता हैं। 


तत्कालीन राष्ट्रपति डाॅ0 राजेन्द्र प्रसाद ने 26 नवम्बर, 1949 को संविधान सभा में डाॅ0 आंबेडकर की प्रसंशा करते हुए कहा कि डाॅ0 आंबेडकर को प्रारूप समिति में लेने और उसका सभापति बनाने का निर्णय हमने लिया था और हम उससे बेहतर निर्णय ले ही नहीं सकते थे।


डाॅ0 निर्मल ने कहा कि बाबा साहेब डाॅ0 आंबेडकर संविधान सभा की राष्ट्र ध्वज समिति के भी सदस्य थे।  अशोक चक्र और चरखा पर जब बहस हो रही थी उस समय डाॅ0 आंबेडकर ने सारनाथ के अशोक चक्र की व्यावहारिकता, दार्शनिकता, कलात्मकता और श्रेष्ठता पर अपने सर्वोच्चतम विचार व्यक्त किये और इस समिति ने डाॅ0 आंबेडकर के तर्कों को स्वीकार करते हुए 22 जुलाई, 1947 को राष्ट्र ध्वज के लिए अशोक चक्र को स्वीकार किया। डाॅ0 बाबा साहेब आंबेडकर संविधान सभा की मूलभूत अधिकार समिति के भी सदस्य थे।  डाॅ0 आंबेडकर ने संविधान की प्रत्येक धारा को संविधान सभा की बहसों में विद्वतापूर्ण तरीके से तथा व्यापक कारण बताते हुए प्रस्तुत किया। संशोधनों को स्वीकार अथवा अस्वीकार किया।  उन्होंने अपनी योग्यता को प्रदर्शित करते हुए सदस्यों के सुझावों पर विचार किया, आलोचनाओं का उत्तर दिया और जहां पर आवश्यक समझा वहां संशोधनों को रद्द कर दिया।


डाॅ0 निर्मल ने कहा कि भारत का संविधान लोकतंत्र की सबसे पवित्र पुस्तक है और बाबा साहेब डाॅ0 आंबेडकर को सम्मान देने के लिए 26 नवम्बर, 2019 को उत्तर प्रदेश विधान सभा द्वारा आहूत ''संविधान दिवस'' पर आयोजित विशेष  सत्र अविस्मरणीय एवं स्वागत योग्य है।


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