स्थानीय निकाय चुनाव को लेकर राजस्थान मे सत्ता व संगठन मे उठे विवाद पर पानी छिड़कने के बावजूद तूफान के पहले की शांति बरकरार

 जयपुर : नवम्बर माह मे होने वाले स्थानीय निकाय चुनाव को लेकर कांग्रेस शासित राजस्थान प्रदेश मे सत्ता व संगठन मे शुरु से किसी ना किसी मुद्दे को लेकर खुलकर विरोधाभास साफ नजर आता रहा है। चुनाव के तरिके को लेकर प्रदेशाध्यक्ष पायलट व मुख्यमंत्री गहलोत खेमे मे जारी संघर्ष को बातचीत के जरिये ठंडा करने की कोशिश के बावजूद 16-अक्टूबर को चुनाव प्रक्रिया सम्बंधित जारी नोटिफिकेशन के अभी तक उसी रुप मे बरकरार रहने के चलते आज भी मेयर-सभापति व चेयरमैन के चुनाव को लेकर भ्रम की स्थिति कायम है।
                 राजस्थान मे तीन नगर निगम को मिलाकर कुल 49 स्थानीय निकायो मे चुनाव नवम्बर माह मे होने का ऐहलान सरकारी स्तर पर हो चुका है। जिन 49 स्थानीय निकायो मे चुनाव होने जा रहे है। उनमे से 21 पर कांग्रेस व 21 पर भाजपा का कब्जा है। बाकी सात पर अन्यो का कब्जा बरकरार है। इस मोजूदा स्थिति मे बदलाव लाकर अधिक से अधिक स्थानीय निकायो पर कब्जा करने की सरकार होने के कारण कांग्रेस भरपूर कोशिश करेगी। पर देखना होगा कि सत्ता व संगठन के मध्य जारी आपसी खींचतान के चलते किस हद तक कांग्रेस को इन चुनावों मे सफलता मिल पाती है।
                  1998 मे अशोक गहलोत के नेतृत्व मे कांग्रेस सरकार बनने के बाद गहलोत ने अपने अपने विधानसभा क्षेत्र का अघोषित रुप से विधायक या विधायक का चुनाव लड़ने वाले के मालिक का रुप देकर चुनाव -संगठन व हर तरह के विकास कार्य एवं तबादलो का मालिक बनाने के बाद गहलोत के मुख्यमंत्री पद के खिलाफ चाहे आज तक विधायकों मे बडा असंतोष नही उभर पाया हो। लेकिन गहलोत के तीनो मुख्यमंत्री कार्यकाल के समय पहली दफा सचिन पायलट के मजबूत कांग्रेस अध्यक्ष के रुप मे उभरने से इन चुनावों मे तस्वीर जरा बदली बदली नजर आ सकती है। पार्षद व सभापति की टिकट पर मात्र एक वयक्ति विशेष की चलने की बजाय बाकायदा एक कमेटी द्वारा निर्णय लेने की सम्भावना बनती जा रही है। जिसमे अपरहैण्ड स्थानीय कांग्रेस विधायक या विधानसभा का चुनाव लड़ने वाले कांग्रेस नेता का रहेगा पर निर्णय मे सबकी भागीदारी जरुर रहेगी। इसके अतिरिक्त सचिन पायलट के सत्ता मे अधिकाधिक लोगो की भागीदारी सुनिश्चित कर लोकतंत्र को मजबूत करने की नीयत को भांप कर अनेक कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने उन तक अपनी पीड़ा पहुंचाते हुये कहा कि अनेक प्रभावशाली नेता स्थानीय निकाय मे उम्मीदवार के तौर पर अपनी एक वार्ड पार्षद की टिकट की बजाय पत्नी, पुत्र व पुत्रवधू की भी लेकर उनको भी चुनाव लड़वाने मे कामयाब होते रहे है। जिस पर सख्ती से रोक लगाकर एक परिवार से एक टिकट मिलने की मांग की है।
                राजस्थान मे 49 निकायो के लिये होने वाले चुनाव मे से 21 निकायो पर काबिज कांग्रेस इस चुनाव मे अपना कब्जा बरकरार रखने के साथ साथ अधिक से अधिक निकायो पर कब्जा करने की कोशिश मे सरकार होने के कारण नजर आ रही है।लेकिन ऊपर से निचे तक सत्ता व संगठन मे जारी शीतयुद्ध के चलते यह सबकुछ कितना सम्भव हो पाता है। यह सबकुछ परिणाम आने पर नजर आयेगा। लेकिन यह तय है कि टिकट बंटवारे को लेकर मुख्यमंत्री गहलोत खेमा मात्र विधायक या विधायक का चुनाव लड़े उम्मीदवार को उनके अपने अपने क्षेत्र का पूर्ण रुप से मालिक बनाने की कोशिश करेगा। वही सचिन पायलट इसके विपरीत कांग्रेस द्वारा गठित एक कमेटी द्वारा टिकट वितरण का निर्णय करने की वकालत करता नजर आ सकता है।
               इससे अलग हटकर यह है कि लोकसभा व फिर विधानसभा उपचुनाव मे सांसद हनुमान बेनीवाल की पार्टी से भाजपा के बने गठबंधन को अब निकाय चुनाव मे भाजपा द्वारा तोड़नै का ऐहलान भाजपा प्रदेशाध्यक्ष सतीश पुनिया द्वारा करने के बाद कांग्रेस खेमे मे खुशी देखी जा रही है। जबकि भाजपा के अपने दम पर चुनाव लड़ने की घोषणा करने के बाद उनके कार्यकर्ता भी अधिक सक्रिय हो गये है।
                 कुल मिलाकर यह है कि मेयर-सभापति व चैयरमैन के चुनाव को लेकर पहले से अलग हटकर अब अधिक समय मिलने के कारण बाड़ेबंदी व खरीद फरोख्त को काफी बढावा मिलेगा। जिसमे हमेशा से सत्ता पक्ष को फायदा मिलता रहा। उक्त चुनावों मे भी ऐसा होना प्रतीत होता है।


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