नयी दिल्ली, - जम्मू कश्मीर में लोगों को राज्य के उच्च न्यायालय तक पहुंचने में कथित रूप से हो रही कठिनाइयों को ''अत्यधिक गंभीर' बताते हुये उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को मुख्य न्यायाधीश से इस मामले में अपनी रिपोर्ट भेजने का अनुरोध किया।
प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति एस ए बोबडे और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर की पीठ ने कहा कि इन आरोपों को गंभीरता से लेने के लिये उच्चतम न्यायालय बाध्य है।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि यदि आवश्यक हुआ तो वह स्वंय श्रीनगर जायेंगे।
पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता हुजेफा अहमदी से कहा, ''यदि आप ऐसा कह रहे हैं तो हमें इसका गंभीरता से संज्ञान लेना होगा। हमें बतायें कि लोगों को उच्च न्यायालय जाना क्यों बहुत मुश्किल हो रहा है। क्या कोई उन्हें उच्च न्यायालय जाने से रोक रहा है? यह बहुत ही गंभीर मामला है।''
दो बाल अधिकार कार्यकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अहमदी ने पीठ से कहा कि राज्य में लोगों के लिये उच्च न्यायालय तक जाना बहुत ही मुश्किल है।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ''आप कह रहे हैं कि आप उच्च न्यायालय नहीं जा सकते। हमने उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से रिपोर्ट मंगायी है। यदि आवश्यक हुआ, मैं खुद वहां जाऊंगा।''
इसके साथ ही पीठ ने आगाह भी किया कि अगर ये आरोप गलत पाये गये तो याचिकाकर्ताओं को इसके नतीजे भुगतने के लिये तैयार रहना चाहिए।
जम्मू कश्मीर सरकार की ओर से सालिसीटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ से कहा कि राज्य में सभी अदालतें काम कर रही हैं। यहां तक कि वहां लोक अदालत भी लगी है।
न्यायालय कश्मीर में बच्चों को नजरबंद किये जाने के मामले में शीर्ष अदालत के हस्तक्षेप के लिये दायर जनहित याचिका पर सुनवाई कर रहा था।
राज्य के बंटवारे और अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधान रद्द करने के बाद जम्मू कश्मीर में बच्चों को गैर कानूनी तरीके से नजरबंद किये जाने के खिलाफ बाल अधिकारों के विशेषज्ञ इनाक्षी गांगुली और प्रोफेसर शांता सिन्हा ने यह याचिका दायर की है।
याचिका में दावा किया गया है कि 18 साल की आयु से कम के उम्र के सभी व्यक्तियों, जिनहें हिरासत में लिया गया है, उनकी आयु की गणना के जरिये पहचान की जानी चाहिए।
याचिका में गैरकानूनी हिरासत में रखे गये बच्चों को उच्च न्यायालय की किशोर न्याय समिति के समक्ष पेश करने और उन्हें मुआवजा दिलाने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है।
वक़्फ़ संशोधन बिल के विरोधियों को लखनऊ पुलिस द्वारा भेजा गया नोटिस असंवैधानिक, सुप्रीम कोर्ट ले एक्शन- शाहनवाज़ आलम
नयी दिल्ली, 11 अप्रैल 2025 . कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव शाहनवाज़ आलम ने उत्तर प्रदेश पुलिस पर वक़्फ़ संशोधन विधेयक के खिलाफ विचार रखने वाले नागरिकों के संविधान प्रदत्त अभिव्यक्ति की आज़ादी और विरोध करने के मौलिक अधिकारों के हनन करने का आरोप लगाया है. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से अपने फैसलों की अवमानना पर स्वतः संज्ञान लेकर दोषी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ़ कार्यवाई की मांग की है. शाहनवाज़ आलम ने जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा है कि लखनऊ के कई नागरिकों को लखनऊ पुलिस द्वारा उनकी तरफ से वक़्फ़ संशोधन विधेयक के खिलाफ़ होने वाले संभावित प्रदर्शनों में शामिल होने का अंदेशा जताकर उन्हें नोटिस भेजा गया है. जबकि अभी नागरिकों की तरफ से कोई विरोध प्रदर्शन आयोजित हुआ भी नहीं है. सबसे गम्भीर मुद्दा यह है कि इन नोटिसों में नागरिकों को अगले एक साल तक के लिए उनसे शांति भंग का खतरा बताते हुए 50 हज़ार रुपये भी जमा कराने के साथ इतनी धनराशि की दो ज़मानतें भी मांगी जा रही हैं. शाहनवाज़ आलम ने कहा कि यूपी पुलिस यह कैसे भूल सकती है कि उसकी यह कार्यवाई संविधान के अनुच्छेद 19 का उल्लंघन है जो नागर...
टिप्पणियाँ