भगवती चरण वर्मा का स्मरण परम्परा का स्मरण है - डाॅ0 सदानन्दप्रसाद गुप्त


लखनऊ, - उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के तत्वावधान में भगवतीचरण वर्मा जयन्ती समारोह का आयोजन शुक्रवार, 30, जुलाई, 2019 को यशपाल सभागार, हिन्दी भवन, लखनऊ में किया गया। 

डाॅ0 सदानन्दप्रसाद गुप्त, मा0 कार्यकारी अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान की अध्यक्षता में आयोजित संगोष्ठी में मुख्य अतिथि  उदय प्रताप सिंह, पूर्व कार्यकारी अध्यक्ष, उ0प्र0 हिन्दी संस्थान, विशिष्ठ अथिति के रूप में  गोपाल चतुर्वेदी, पूर्व अध्यक्ष, उ0प्र0भाषा संस्थान, विशेष समागत रूप में डाॅ0 उदय प्रताप सिंह, मा0 कार्यकारी अध्यक्ष, हिन्दुस्तानी एकेडमी, प्रयागराज, मुख्य वक्ता के रूप में डाॅ0 उषा सिन्हा, पूर्व अध्यक्ष, भाषा विज्ञान विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय एवं वक्ता के रूप में वरिष्ठ साहित्यकार  धीरेन्द्र वर्मा, भगवतीचरण वर्मा की कहानी पाठ के लिए  गोपाल सिन्हा भगवतीचरण वर्मा की कविताओं के पाठ के लिए  चन्द्रशेखर वर्मा आमंत्रित थे।

दीप प्रज्वलन, माँ सरस्वती की प्रतिमा एवं भगवतीचरण वर्मा के चित्र पर पुष्पांजलि के उपरान्त प्रारम्भ हुए कार्यक्रम में वाणी वन्दना की प्रस्तुति  कुमुद शुक्ला द्वारा की गयी। मंचासीन अतिथियों का उत्तरीय द्वारा स्वागत डाॅ0 सदानन्दप्रसाद गुप्त, मा0 कार्यकारी अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान ने किया।

भगवतीचरण वर्मा के व्यक्तित्व पर  धीरेन्द्र वर्मा अपने विचार व्यक्त करते हुये कहा वे कवि कहानीकार, उपन्यासकार, नाटककार थे, आकाशवाणी दूरदर्शन के माध्यम से साहित्य की महान सेवा की। वे बहुआयामी व्यक्तित्व के थे। वे छन्दबद्ध कविता के सर्मथक थे। वे विश्व में प्रकाशित अन्य पुस्तकों का भी अध्ययन करते थे। चित्रलेखा में उनकी आत्मा ंबसती थी। चित्रलेखा उपन्यास उनकी भाग्य लक्ष्मी बन गईं। विकास का क्रम व भाग्यवाद उनकी रचनाओं में दिखता है।

मुख्य वक्ता के रूप में पधारीं डाॅ0 उषा सिन्हा, पूर्व अध्यक्ष, भाषा विज्ञान विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय ने अपने उद्बोधन मेें कहा-'वे लखनऊ की साहित्यिक त्रिवेणी के यशस्वी यशपाल अमृतलाल नागर, भगवतीचरण वर्मा साहित्यकार थे। वे स्वाभिमानी व दृढ़ निश्चयी, सर्जनात्मक साहित्य के शब्द शिल्पी सम्पूर्ण साहित्यकार व सफल सम्पादक थे। भगवती बाबू का साहित्य जीवंत है। पाठकों द्वारा आज भी पढ़ा जा रहा है। उनकी साहित्य यात्रा कविता से प्रारम्भ होकर कविता में ही समाप्त होती है। उनकी कविता में प्रेम व उल्लास मिलता है। उनके साहित्य में नियतिवाद व भाग्यवाद मिलता है। उनकी रचनाओं में मानवतावाद भी मुखरित हुआ है। उन्हें तुकान्त व अतुकान्त कविताएँ भी लिखीं। 

विशेष समागत के रूप में पधारे डाॅ0 उदय प्रताप सिंह, अध्यक्ष, हिन्दुस्तानी एकेडेमी, प्रयागराज ने अपने उद्बोधन में कहा भगवतीचरण वर्मा साहित्यिक जगत व समाज के लिए पे्ररणा स्रोत हैं। उन्होंने सारगर्भित व सार्थक उपन्यासों की रचना की। उनकी रचनाओं में पारम्परिक मूल्यों की झलक दिखायी पड़ती है। उनके उपन्यास चित्रलेखा में पाप-पुष्प को सुन्दर ढ़ग से परिभाषित करने का प्रयास किया गया है। वे सनातन मूल्यों से टकराते हुए हमें एक नया मार्ग दिखाते हैं। वे हमारी संस्कृति को सहेजने वाले थे।

मुख्य अतिथि के रूप में पधारे श्री उदय प्रताप सिंह, पूर्व कार्यकारी  अध्यक्ष,उ0प्र0 हिन्दी संस्थान ने अपने उद्बोधन में कहा भगवतीरचण वर्मा जी लखनऊ के ही नहीं हिन्दुस्तान के व साहित्य जगत के गौरव हैं। साहित्य समाज का दर्पण है। उनकी रचनाओं में समाज में व्याप्त विसंगतियों पर प्रकाश डाला गया है। कवि की सारी कठिनाई की केवल वही कहानी है.. वे कवि, लेखक महान साहित्यिकार के रूप में हम सबके पे्ररणा स्रोत हैं, सदैव रहेंगे।

इस अवसर पर श्री गोपाल सिन्हा ने भगवतीचरण वर्मा की कहानी 'दो बाँके' का पाठ किया। 

 चन्द्रशेखर वर्मा ने भगवतीचरण वर्मा की कविताओं मैं कब से ढूँढ रहा हूँ, अपने प्रकाश की रेखा. इस दुनिया में बड़ा कठिन है, .हम दीवानों की हस्ती  आज यहाँ, कल वहाँ चले मस्ती का आलम साथ चला, हम धूल उड़ाते जहाँ चले का सस्वर पाठ किया।

अध्यक्षीय सम्बोधन में डाॅ0 सदानन्द प्रसाद गुप्त, मा0 कार्यकारी अध्यक्ष, उ0प्र0 हिन्दी संस्थान ने कहा - 'वे लोग धन्य हैं जो कि विरासत को संजोकर रखते हैं। साहित्य अर्जित करना पड़ता है। साहित्य अचानक प्रकट नहीं होता है, अध्ययन करना पड़ता है। सभलकर रखना पड़ता है। भगवतीचरण वर्मा के उपन्यास सामािजक, सांस्कृतिक राष्ट्रीय चेतना के तत्वों से परिपूर्ण हैं। उनकी रचनाएँ सदैव पढ़ी व पढ़ायी जाती रहेंगी। उन्होंने अपने समय को देखा उसका मूल्यांकन किया फिर उसे अपने साहित्य में उतारा। समाज के व्याप्त पाखण्डों पर सीधा व्यंग्य उनकी रचनाओं का जीवंत बनाता है। रचनाकार अतिरेक का सहारा लेता ही है। साहित्यकार का स्वाभिमान उसका मूलधर्म है। स्वाभिमान के बिना अच्छे साहित्य की रचना नहीं की जा सकती। अतीत में गये बिना व्यक्ति का मन मानता ही नहीं। भगवतीचरण वर्मा जी का स्मरण परम्परा का स्मरण है। भगवतीचरण वर्मा जी के स्मरण के साथ हम साहित्य की परम्परा का स्मरण करते हैं।

कार्यक्रम का संचालन एवं आभार डाॅ0 अमिता दुबे, सम्पादक, उ0प्र0 हिन्दी संस्थान ने किया। 

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