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उपराष्‍ट्रपति ने गैर-संचारी रोगों में वृद्धि पर जताई चिंता

उपराष्‍ट्रपति ने उत्‍तर प्रदेश के लखनऊ में आज संजय गांधी पोस्टग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (एसजीपीजीआईएमएस) में कार्डियोलॉजिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया की राष्ट्रीय इंटरवेंशनल काउंसिल (एनआईसी) की वार्षिक बैठक को संबोधित किया। उन्‍होंने इंडिया काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) की 2017 की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि गैर-संचारी रोगों का बोझ 1990 से 2016 के बीच 30 प्रतिशत से बढ़कर 55 प्रतिशत हो गया जबकि समान अवधि में संचारी रोगों का बोझ 61 प्रतिशत से घटकर 33 प्रतिशत रह गया।


उपराष्‍ट्रपति ने तनाव के उच्च स्तर, मधुमेह, रक्तचाप, धूम्रपान, शराब का अत्यधिक सेवन, व्यायाम की कमी और पर्याप्‍त नींद में कमी के कारण हृदय रोगों में वृद्धि हो रही है। उन्‍होंने कहा कि कम उम्र में होने वाले दिल के दौरे की रोकथाम के लिए जीवन शैली में बदलाव लाने की आवश्‍यकता है।


श्री नायडू ने कहा कि निस्‍संदेह यह साबित हो चुका है कि सप्ताह में पांच दिन नियमित रूप से मध्यम तीव्रता वाले एरोबिक व्यायाम जैसे तेज चलना, साइकिल चलाना, जॉगिंग और तैराकी करने से हृदय रोग की संभावना को घटाने में मदद मिलेगी।


यह देखते हुए कि भारत ऐतिहासिक तौर पर अब तक का सबसे बड़ा जनसांख्यिकीय लाभांश हासिल करने के लिए तैयार है, उन्होंने कहा कि समावेशी एवं सतत विकास के अपने सपने को साकार करने और दुनिया में नेतृत्व के लिए अपने सही स्थान हासिल करने के लिए स्वस्थ और चुस्त युवाओं की आवश्‍यकता है। उन्होंने जोर देकर कहा कि बच्चों को शारीरिक रूप से सक्रिय होने और एनसीडी से बचने के लिए स्कूली दिनों से ही खेलों में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।


युवाओं के बीच जंक फूड के प्रति बढ़ते आकर्षण का जिक्र करते हुए उन्होंने युवाओं को जंक फूड न खाने की सलाह दी क्योंकि यह उनके स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह है और यह उनके जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित कर रहा है। श्री नायडू ने कहा कि बीमारियों की रोकथाम और शुरुआती चरणों में ही उनका पता लगाने पर देश को अधिक संसाधन लगाने चाहिए। उन्होंने लोगों में हृदय रोग के जोखिम संबंधी कारकों की पहचान करने और उनकी रोकथाम के लिए उपाय करने के लिए बड़े पैमाने पर जांच अभियान शुरू करने का आह्वान किया।


हृदय रोग के खिलाफ हमारी लड़ाई में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की महत्‍वपूर्ण भूमिका को उजागर करते हुए उपराष्ट्रपति ने जोर देकर कहा कि पीएचसी को एक दमदार, जवाबदेह और उपकरणों से पूरी तरह सुसज्जित संस्‍थानों के नेटवर्क में बदलना महत्‍वपूर्ण है।


यह उल्लेख करते हुए कि देश भर में स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच के लिहाज से देश ने काफी प्रगति की है, श्री नायडू ने कहा कि 1951 में जन्‍म के समय जीवन प्रत्‍याशा करीब 37 वर्ष थी जो बढ़कर 2011-2015 में करीब 68.3 वर्ष हो गई। यह आजादी के बाद सार्वजनिक स्‍वास्‍थ्‍य क्षेत्र में सबसे अधिक उल्लेखनीय उपलब्धि रही है।


उपराष्ट्रपति ने चिकित्सा छात्रों को भी सलाह दी कि वे नया कार्यभार ग्रहण करने से पहले कम से कम तीन वर्षों तक ग्रामीण क्षेत्र के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में अपनी सेवाएं प्रदान करें। यह बताते हुए कि भारत को आरएंडडी में अधिक संसाधनों का निवेश अवश्‍य करना चाहिए, उन्होंने कहा कि चिकित्सा विज्ञान में अकल्पनीय प्रगति हो रही है। उन्होंने कहा, 'मशीन लर्निंग एवं ऑग्‍मेंटेड रियलिटी सहित साइबरनेटिक्स और कृत्रिम बुद्धिमत्‍ता (एआई) जैसी उथल-पुथल मचाने वाली नई प्रौद्योगिकी में अत्याधुनिक अनुसंधान से चिकित्सा विज्ञान के प्रतिमान बदल रहे हैं।'


उपराष्ट्रपति ने गुणवत्ता, पहुंच और किफायत के लिहाज से हमारे स्वास्थ्य क्षेत्र में सुधार लाने का आह्वान करते हुए कहा, 'हालांकि हमारी स्वास्थ्य सेवाएं दुनिया भर में सबसे सस्ती हैं लेकिन जीवन रक्षक दवाओं और प्रक्रियाओं में से कुछ अभी भी आम आदमी की पहुंच से बाहर हैं। स्वास्थ्य क्षेत्रों के सभी हितधारकों को बेहतर तालमेल से काम करने की आवश्यकता है ताकि आम लोगों के लिए स्‍वास्‍थ्‍य सेवाएं सस्ती और सुलभ हो सकें।'  


उपराष्ट्रपति ने कहा कि भारत को अन्य देशों के लिए गुणवत्तापूर्ण एवं सस्ती स्वास्थ्य सेवाओं के लिए एक आदर्श देश के रूप में काम करना चाहिए। उन्होंने कहा, 'मुझे इसमें कोई संदेह नहीं दिखता कि हमारे पास इस लक्ष्य को हासिल करने की क्षमता मौजूद है।'


इस अवसर पर उत्तर प्रदेश के राज्यपाल श्री राम नाईक, संजय गांधी पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज के निदेशक डॉ. राकेश कपूर, कार्डियोलॉजिकल सोसायटी ऑफ इंडिया के अध्यक्ष (चयनित) डॉ. एमके दास एवं अन्य गणमान्य उपस्थित थे।   


 


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