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टोंगबी की लड़ाई का प्लेटिनम जुबली समारोह


एडवांस ऑर्डिनेन्‍स डिपो (एओडी) के 221 आयुध कर्मियों द्वारा 6/7 अप्रैल 1944 की रात को लड़े गए कंगला तोंगबी के युद्ध को द्वितीय विश्व युद्ध के भयंकर युद्धों में से एक माना जाता है। जापानी बलों ने तीन ओर से आक्रामक आक्रमण करके इम्फाल और इसके आसपास के क्षेत्रों पर कब्जा करने की एक योजना बनाई थी। इम्फाल तक अपनी संचार लाइन का विस्तार करने के प्रयास के तहत, 33वीं जापानी डिवीजन ने म्यांमार  स्थित 17वीं  भारतीय डिवीजन के मार्ग को अवरुद्ध करते हुए मुख्य कोहिमा-मणिपुर राजमार्ग पर अपना कब्‍जा जमा लिया और कंगला तोंगबी की ओर आगे बढ़ना शुरू कर दिया। कंगला तोंगबी में तैनात 221 एओडी की एक छोटी लेकिन दृढ़ टुकड़ी ने अग्रिम जापानी बलों को रोकने के लिए उनके खिलाफ कड़ा प्रतिरोध किया।


हालांकि तकनीकि दृष्टि से 221 एओडी की स्थिति बिल्कुल भी मजबूत नहीं थी। जब यह टुकडी हर तरफ से दुश्मन से घिर गई तो इसने अपनी आत्‍मरक्षा के लिए स्‍वयं की युद्ध क्षमता पर भरोसा किया। डिपो की रक्षा के लिए उपमुख्‍य आयुध अधिकारी (डीसीओओ), मेजर बॉयड को इस अभियान के संचालन का प्रभारी बनाया गया। हमले की तैयारी के लिए एक आत्मघाती दस्ता तैयार किया गया, जिसमें मेजर बॉयड, हवलदार/क्लर्क स्टोर के तौर पर कार्य करने वाले बसंत सिंह, कंडक्टर पक्केन के अलावा डिपो के अन्य कर्मी भी शामिल थे।


06 अप्रैल 1944 को डिपो से 4,000 टन गोला-बारूद, आयुध और अन्य युद्ध के सामानों को हटाने के आदेश मिले। 6/7 अप्रैल 1944 की रात को, जापानियों ने डिपो पर भारी हमला किया, लेकिन डिपो के निचले भाग की ओर एक गहरे नाले को एक सुरक्षा कवर के रूप में इस्तेमाल किया गया। इस नाले का बंकर के तौर पर उपयोग करते हुए यहां से दुश्‍मन पर भारी गोलीबारी की गई। इस हमले ने न सिर्फ दुश्‍मन को हिला दिया, बल्कि जापानियों के कई सैनिकों की मौत भी हुई और दुश्‍मन को अपने कदम वापस खींचने पर मजबूर होना पड़ा। इस हमले में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाने वाली ब्रेन गन को हवलदार और क्‍लर्क स्टोर, बसंत सिंह ने बनाया था।


वीरता के इस कार्य के लिए, मेजर बॉयड को मिलिट्री क्रॉस (एमसी), कंडक्टर पक्केन को  मिलिट्री मेडल (एमएम) और हवलदार/क्लर्क स्टोर,बसंत सिंह को भारतीय विशिष्ट सेवा मेडल (आईडीएसएम) से सम्मानित किया गया।


कंगला टोंगबी वॉर मेमोरियल, 221 एओडी, 19 के आयुध कर्मियों की कर्तव्य के प्रति अगाध श्रद्धा का एक मौन प्रमाण होने के साथ-साथ उनके सर्वोच्च बलिदान का भी प्रमाण है। यह स्‍मारक विश्‍व को यह बताता है कि आयुध कर्मी पेशेवर कार्मिक होने के अलावा युद्ध के समय में भी एक कुशल सैनिक के रूप से किसी से पीछे नहीं हैं। चूंकि यह कठिन लड़ाई प्लेटिनम जुबली का स्‍मरण कराती है। इसलिए भारतीय सेना के सभी स्‍तर के आयुध कोर कर्मियों के दिलों में कंगला तोंगबी की भावना अनंत काल तक उनके लिए प्रेरणा का स्रोत बनी हुई है।


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