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26 साल पहले राम मंदिर लहर और अब नरेंद्र मोदी के खिलाफ सपा-बसपा एकसाथ


सपा और बसपा एक बार फिर एकसाथ हैं. कारण सिर्फ इतना कि भाजपा को हराना है. 2014 में मोदी लहर थी. इसलिए यूपी में भाजपा को 78 में 71 सीटें मिली थी. यह पहला मौका नहीं है जब एक-दूसरे का विरोध करने वाली सपा-बसपा साथ आई हों. ठीक ऐसे ही 26 साल पहले 1993 में अयोध्या के राम मंदिर की लहर थी. 


सपा और बसपा एक बार फिर एकसाथ हैं. कारण सिर्फ इतना कि भाजपा को हराना है. 2014 में नरेंद्र मोदी की लहर थी. इसी वजह से यूपी में भाजपा को 78 में से 71 सीटें मिली थीं. यह पहला मौका नहीं है जब एक-दूसरे का विरोध करने वाली सपा-बसपा साथ आई हों. ठीक ऐसे ही 26 साल पहले 1993 में अयोध्या के राम मंदिर की लहर थी.  


भाजपा को हराने के लिए बनाए गए अखिलेश यादव और मायावती गठबंधन को उम्मीद है कि वो दोनों 1993 का करिश्मा दोबारा दिखा सकते हैं. 1993 में मुलायम सिंह यादव और कांशीराम ने राम मंदिर लहर के बीच भाजपा को रोकने में सफलता पाई थी. आइए आपको बताते हैं कि 26 साल पहले सपा-बसपा ने कैसे भाजपा को हराया था...


सपा-बसपा ने 1993 में मिलकर जीती थीं 176 सीटें   


 

1993 में यूपी विधानसभा में 422 सीटें थीं. सपा 256 और बसपा 164 सीटों पर मैदान में उतरी थी. सपा ने 109 और बसपा ने 67 सीटें जीती थीं. दोनों दलों ने मिलकर 176 सीटों पर कब्जा किया. हालांकि, भाजपा ने 177 सीटें जीती थीं. लेकिन, सपा-बसपा ने जनता दल सहित कुछ दलों के साथ मिलकर सरकार बना ली थी. भाजपा को पूरा भरोसा था कि राम लहर उसे दोबारा सत्ता देगी. तब कांशीराम और मुलायम सिंह यादव की नजदीकियां चर्चा का केंद्र थीं. इस दौरान एक नारा ‘मिले मुलायम कांशीराम, हवा में उड़ गए जयश्री राम’ भी चर्चा में था.


अगर वोटिंग 2014 जैसी हुई तो भाजपा को नुकसान


2014 में भाजपा और अपना दल का वोट शेयर 43.63% था, जो सपा-बसपा के कुल वोट शेयर 42.12% से ज्यादा है. अगर, सीटों के हिसाब से देखें और सपा-बसपा का वोट शेयर मिलाया जाए तो 41 सीटों पर भाजपा को भारी नुकसान हो सकता है. लेकिन, परिणाम गणित पर नहीं, मुद्दों पर निर्भर करता है. 2014 में कांग्रेस के खिलाफ एंटी-इनकम्बेंसी थी, इसलिए लोगों ने भाजपा को चुना था.


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