शाहिद आजमी की नौंवी बरसी संविधान पर सेमिनार का आयोजन

लखनऊ । सामाजिक न्याय और संविधान पर हो रहे हमलों के खिलाफ शाहिद आजमी की नौंवी बरसी पर सामाजिक न्याय के लिए संघर्षरत साथियों का जमावड़ा लखनऊ के कैफी आजमी एकेडमी में हुआ। रिहाई मंच द्वारा आयोजित कार्यक्रम से सवर्ण आरक्षण, 13 प्वाइंट रोस्टर वापस लेने, संख्यानुपात में प्रतिनिधित्व, न्यायपालिका व निजी क्षेत्रों में आरक्षण देने, दलित मुसलमान-ईसाई को एससी में शामिल करने की मांग का प्रस्ताव पारित करते हुए राजनीतिक दलों से चुनावी घोषणापत्र में शामिल करने की मांग की। सभी ने एक मत से कहा कि अगर मोदी की छात्र-नौजवान-मजदूर विरोधी नीतियों के खिलाफ जो खुलकर नहीं है हम उसके खिलाफ होंगे। जनमंच के संयोजक पूर्व आइजी एसआर दारापुरी ने कहा कि वर्तमान में सरकार अभिव्यक्त की आजादी, मानवाधिकार कार्यकताओं का दमन और विरोध की आवाजों को दबाने में में लगी है। जो कि बड़ा खतरा है। इसके खिलाफ हम सबको खड़ा होना होगा। रिहाई मंच अध्यक्ष मोहम्मद शुऐब ने कहा कि आर्थिक आधार पर सवर्ण आरक्षण के जरिए संविधान, सामाजिक न्याय व बहुजनों पर बड़ा हमला बोला गया है। सवर्ण आरक्षण को लागू करने और संविधान संशोधन के जरिए संविध् Iान की मूल संरचना और वैचारिक आधार पर हमला किया गया है। सामाजिक न्याय व आरक्षण की अवरणा को निशाने पर लिया गया है। यह खतरनाक है दलितों, आदिवासियों और पिछड़ों के आरक्षण के खात्मे का रास्ता खुल गया है ।राजनीति करने की परंपरा है उसके सामानान्तर सामान्य जनों के बीच राजनीति उभरनी चाहिए और उनके बीच से नेतृत्व पैदा होना चाहिए। आजादी के 60-70 साल बीतने के बावजूद अगर देश की जनता जो मेहनत करती है जो इस देश को चलाती हैवहां ऐसे राजनेताओं के सामने अगर हाथ जोड़ के खड़ी रहेगी तो न देश मजबूत होगा और न लोग मजबूत होंगे। लेखक व पत्रकार विनय जायसवाल ने कहा कि आरक्षण प्रतिनिधि त्व का मसला है और यह प्रतिनिधित्व उसी रुप में और उन्हीं लोगों के लिए है जिसका संविधान में स्पष्ट उल्लेख किया गया है यानि सामाजिक और शैक्षणिक रुप से पिछड़े हुए लोग। आज हमें जिस रुप में संवैधानिक आरक्षण मिल गया है अब उसे बचाए रखने का खतरा भी हमारे सर पर मडराने लगा है क्योकि देश के सर्वे शनिक और नीति नियामक संस्थाओं में आजादी के इतने सालों बाद भी दलित, आदिवासी, पिछड़े, अल्पसंख्यक और आदिवासी, पिछड़े, अल्पसंख्यक और महिलाओं का प्रतिनिधित्व नहीं है जिसका परिणाम आरक्षण लागू करने से लेकर कार्यपालिका और न्यायपालिका दोंनों के निर्णयों में साफ देखा जा सकता है। इसका ताजा उदाहरण 13 प्वाइंट रोस्टर है। इसीलिए आरक्षण प्रतिनिधि त्व का मसला है न कि गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम। आज देश में ओबीसी तबके की आबादी 52 प्रतिशत से भी कहीं ज्यादा है जो दलित आदिवासी और अल्पसंख्यक को मिलाकर तीन-चौथाई से भी बहुत अधिक हो जाती है। मीडिया में भी इन तबकों का प्रतिनिधित्व न होने के चलते वंचित समाज के मुद्दों को गुमराह कर दिया जाता है। आज जरुरत इन्हीं से लड़ने की है। वरिष्ठ पत्रकार मनोज सिंह ने कहा कि सही मायने में देश जब सामाजिक न्याय और आर्थिक गैरबराबरी न हो। आज के समय में आर्थिक–सामाजिक गैरबराबरी की खाई चरम पर पहुंच गई है। बाबा साहेब ने भी कहा था कि स्वतंत्रता वहीं होती हैंजहां किसी तरह का शोषण न हो। जहाँ एक वर्ग दूसरे वर्ग पर अत्याचार न करता होसामाजिक न्याय, सम्मान, गरीबी का मामला हो, बेरोजगारी का मामला हो उसमें चीजें बद से बदतर से बदतर हुई हैं और देश पीछे गया है। आरएसएस पहले भी संविधान और डा0 अम्बेडकर का विरोधी रहा है और मनुसंहिता का राज कायम करना चाहता है। पाखंड, झूठ, लूट, फूट उनकी बुनियाद में हैअंबेडकर के स्मारक बनाते हैं, रोज दलितों का नाम लेते हैंऔर रोज एक रोहित वेमुला की जान लत हैइसाफ मंच के संयोजक मोहम्मद सलीम ने कहा कि मुल्क के हालात आपके सामने है चुनाव एक रास्ता है पर चुनाव ही एक रास्ता नहीं है। लोग सोच रहे हैं कि सिर्फ चुनाव हैलोग सोच रहे हैं कि सिर्फ चुनाव के जरिए इस फासिस्ट निजाम को हरा देंगे जो कि मुमकिन नहीं है। इस मुल्क में अगर जम्हूरियत बचाना है, संविधान बचाना है तो जम्हूरी तहरीकों को खड़ा करना होगा। एएमयू छात्र नेता अहमद मुजतबा फराज ने दलित मुसलमान-ईसाई को एससी में शामिल करने की मांग करते हुए कहा कि आरक्षण का अधार सामाजिक व शैक्षणिक पिछड़ापन हैआज भी आकड़े कह रहे हैं कि आबादी के अनुपात में सत्ता व शासन की संस्थाओं-विभिन्न क्षेत्रों में दलित-आदिवासियों व पिछड़ों काप्रतिनिधित्व काफी कम है। केन्द्र सरकार की ग्रुप ए की नौकरियों में लगभग सवर्ण 68 प्रतिषत, ओबीसी 13 प्रतिषत, एससी 13 प्रतिषत, एसटी 6 है। देश हैदेश के 496 विश्वविद्यालयों के कुलपतियों में 448 सवर्ण हैं। 43 केन्द्रिय विश्वविद्यालयों में प्रतिषत पोफेसर 92.9 प्रतिशत एसोसिएट प्रोफेसर, 66-27 प्रतिषत एसिसटेंट प्रोफेसर सवर्ण हैं। केन्द्रिय विश्वविद्यालयों में एक भी प्रोफेसर ओबीसी तबके से नहीं है।बीएचयू के छात्र नेता रणधीर यादव, कुलदीप मीना और भुवाल यादव ने कहा कि संविधान और सामाजिक न्याय पर इस दौर के इस बड़े हमले को कत्तई बरदास्त नहीं किया जा सकता है। नरेन्द्र मोदी सरकार ने आरएसएस के संविधान बदलने की योजना के एक पैकेज को अमली जामा पहनाया है। आरएसएस की संविधान व आरक्षण से नफरत जगजाहिर है। यादव सेना अध्यक्ष शिववकुमार यादव ने कहा कि लाट की जगह लाद रोस्टर लागू किया जाए जिसमें प्रथम की कोई कमी के ल तीन पोस्ट रिजर्व कटेगरी के लिए आरक्षित की जाएइलाहबाद विश्वविद्यालय में रजनीकांत यादव की हुई सांस्थानिक हत्या इस बात का गवाह है कि मनुवादी निजाम बहुजन छात्रों की सांस्थानिक हत्या के लिए जिम्मेदार हैं। हम इस सम्मेलन से मांग करते हैं कि रोहित एक्ट को जल्द से जल्द लागू किया जाए। 13 प्वाइंट रोस्टर बहुजन छात्रों के सांस्थानिक दमन का सुनियोजित षड्यंत्र है। माइनारिटी कोआर्डिनेशन कमेटी गुजरात के संयोजक मुजाहिद नफीस ने कहा कि 13 प्वाइंट रोस्टर और सवर्ण आरक्षण लोकतांत्रिक व्यवस्था और राष्ट्र निर्माण के लिए घातक है। आर्थिक पिछड़ापन दूर करने के लिए आरक्षण सामधान नहीं है। परभण आर्थिक विमता मिटाने का एजेण्डा नहीं है। इस मसले पर सत्ता और विपक्ष की दरी मिटती हुई नजर आई। सामाजिक न्याय आंदोलन नेता बलवंत यादव ने कहा कि न्यायपालिका के भरोसे संविधान, सामाजिक न्याय और लोकतंत्र नहीं बचेगा। संविधान, सामाजिक न्याय और लोकतंत्र को बचाने की ऐतिहासिक जिम्मेवारी के साथ हमें सड़कों पर आना ही होगा। मुजफ्फरनगर से आए जाकिर अली त्यागी ने योगी-मोदी सरकार में आम जनता से लेकर बुद्धिजीवियों तक की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला बोला जा रहा है। फेसबुक पर लिखने के नाम पर मुझ पर देशद्रोह तक का मुकदमा पंजीकृत किया गया इससे समझा जा सकता जो लोग सड़कों पर उतरकर विरोध करने से उनके मात सलूक करती होगी। नोटबंदी के खिलाफ आवाज उठाने पर देशद्रोह के आरोपी बनाए गए इंडियन पीपल्स सर्विसेज के राष्ट्रीय संयोजक बजेश बागी ने कहा कि मनुवादी ताकतें जो आवाज दबाने का काम करती हैं वो आज सवर्ण आरक्षण जैसे जनेउ आरक्षण के जरिए बहुजन समाज के लोगों की हत्या करना चाहते हैं रिहाई मंच नेता सचेन्द्र यादव और शकील कुरैशी ने कहा कि जिन संस्थाओं में दलितों, आदिवासियों और पिछड़ों के लिए आरक्षण लागू नहीं है वहां लागू किया जाना चाहिए था, लेकिन सरकार ने संविधान और सामाजिक न्याय पर हमला बोलते हुए देश को उल्टी दिशा में ले जाने का काम किया है। जो विभिन्न संस्थाओं और क्षेत्रों में सवर्णो के वर्चस्व को कायम करने और बढ़ाने की गारंटी करता है।  में लोकतंत्र तभी होता है


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