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राष्ट्र की सुरक्षा और एकता को समर्पित थे जार्ज फर्नान्डिस - राजेन्द्र चैधरी


जार्ज फर्नान्डिस जैसी शख्सियत का जाना न केवल मेरा अपितु देश की अपूरणीय क्षति है। बिखरे बाल, बिना कलफ का कुर्ता पाजामा इस सादगी में देखकर पहले ज्ञात नहीं होता था कि वह क्रांति का अग्निपुंज भी हो सकता है। समाजवादी आंदोलन के वे प्रखर नायक थे। डाॅ0 लोहिया के निकट सहयोगी थे। श्रमिक आंदोलन के वे पर्याय बन गए थे। मुम्बई की सड़के और समुन्द्र इसका गवाह हैं।

       जार्ज साहब के राजनैतिक जीवन में शून्य से शिखर तक की यात्रा में उतार-चढ़ाव का होना राजनैतिक शोधार्थियों के लिए एक सीख है कि सार्वजनिक राजनीतिक जीवन की चुनौतियां किस तरह की होती है। जार्ज साहब की कामयाबियां देश के लिए गौरव का विषय रही है। रक्षामंत्री के रूप में 30 बार से ज्यादा उन्होंने सियाचिन का दौरा किया था और कड़कड़ाती ठंड और बर्फ से घिरे दुर्गम क्षेत्र में फौजियों का हौसला बढ़ाने बार-बार सियाचीन गए। 

       कारगिल युद्ध में विजय की भूमिका में तत्कालीन रक्षामंत्री जार्ज साहब का योगदान कम नहीं था। रेलमंत्री रहते उन्होंने रेल कर्मचारियों की सुविधाएं बढ़ाई थी। वैसे उनके नेतृत्व में ही 1974 में देश में रेलकर्मियों की लम्बी हड़ताल चली थी जिसकी दुनिया में चर्चा हुई थी। जार्ज साहब लखनऊ में लोकनायक जयप्रकाश नारायण अन्तर्राष्ट्रीय केन्द्र के शिलान्यास के कार्यक्रम में भी शामिल हुए थे, जिसे श्री अखिलेश यादव ने अपने मुख्यमंत्रित्वकाल में पूरा करके दिखाया। भारत भर में जेपी के नाम पर इतना भव्य और विशाल कोई दूसरा केन्द्र नहीं है।  

        मुझे भी कई बार जार्ज साहब के सान्निध्य का अवसर मिला था। सन् 1969 में उत्तर प्रदेश में विधानसभा में मध्यावधि चुनाव हुए थे। मैं तब समाजवादी युवजन सभा का प्रदेशीय संयुक्त मंत्री था और छात्र-युवा आंदोलनों में सक्रिय रहता था। गाजियाबाद में जार्ज साहब की चुनावी सभा थी। यह मेरी उनसे पहली मुलाकात थी। फिर दिल्ली आने-जाने पर उनसे सम्पर्क बना रहा।

        जार्ज साहब सन् 1980 में मेरे पक्ष में विधानसभा की चुनावी सभा को सम्बोधित करने आए थे। उनकी भाषण शैली अलग थी। जनता में उनका बहुत सम्मोहन था। इसके पहले मैं गाजियाबाद से 1977 में विधानसभा का सदस्य निर्वाचित हुआ था।  

        1975 में देश में आपातकाल लगा। जार्ज साहब डायनामाइट केस में बंदी थे। आपातकाल के विरोध में मैं मेरठ जेल में था। वहां से छूटकर दिल्ली आया तो एक दिन तीस हजारी कोर्ट में उनकी पेशी की खबर पाकर मैं श्री के.सी. त्यागी के साथ वहां पहुंचा तो देखा जार्ज साहब के हाथों में हथकड़ी और पांव में बेड़ी पड़ी थी। इस पीड़ादायक स्थिति में भी उनका आत्मविश्वास अडिग था। वे अदालती कार्यवाही में निर्भीक खड़े थे। 

        जार्ज साहब अल्जाइमर बीमारी से ग्रस्त होकर सार्वजनिक जीवन और राजनीति से दूर हो गए थे। इस स्थिति में देखकर बहुत दुःख होता था। लगता था शेर पिंजरे में कैद हो गया है। उनकी याद भुलाई नहीं जा सकती है।

        वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में समाज के सभी वर्गों के बीच राजनीतिक कार्यकर्ताओं में मुद्दों पर अड़कर बेबाकी और साहस से सत्ता प्रतिष्ठानों से टकराने की धारा के लिए धैर्य आवश्यक है। जार्ज के जीवन संघर्ष, ईमानदारी और सादगी से श्री अखिलेश यादव भी प्रेरित हंै। 

         समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अखिलेश यादव के मन में भी जार्ज साहब के प्रति विशेष सम्मानभाव रहा है। श्री यादव समाजवादी विचारधारा को आगे बढ़ाने के लिए सतत प्रयत्नशील हैं। संसद में जार्ज साहब को सुनना एक अलग अनुभव था। उनका मानना था कि छात्रों-नौजवानों, किसानों, मजदूरों, महिलाओं सहित समाज के वंचित तबके के हक़-हकूक की लड़ाई को समाजवादी ही अंजाम तक पहुंचा सकते हैं। भारत की आजादी को अक्षुण्ण रखने के लिए राष्ट्र की सुरक्षा और एकता सर्वोपरि होनी चाहिए, यही समाजवादी विचाराधारा भी है। जनता का भरोसा ही जार्ज साहब को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

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