राज्य संग्रहालय में सौन्दर्य एवं कलात्मकता का संगम-सुसज्जित कलाएं विषय पर विशिष्ट व्याख्यान

लखनऊ:  राज्य संग्रहालय में 30 जनवरी से 16 फरवरी 2019 तक आयोजित होने वाले कला अभिरुचि पाठ्यक्रम के अन्तर्गत आज मुख्य वक्ता के रूप में राष्टीय संग्रहालय, नई दिल्ली की सज्जा कला अनुभाग में संग्रहपाल के पद पर कार्यरत डाॅ0 अनामिका पाठक ने सौन्दर्य एवं कलात्मकता का संगम-सुसज्जित कलाएं विषय पर विशिष्ट व्याख्यान देते हुए सज्जा कला के विविध आयामों को बहुत ही सहजता के साथ व्याख्यायित किया।

वक्ता द्वारा अपने व्याख्यान में बताया गया कि ‘‘सुसज्जा कलाएं’’ अथवा ‘‘सुसज्जित कलाएं’’ भारत की विशाल कला श्रृंखला की ही कड़ी है। कलात्मक कला, लोक कला, जातिय (म्जीदपब) कला, धार्मिक कला, मूर्ति कला इत्यादि अनेकों कलाओं की ही भांति सुसज्जा कला उन अनाम कलाकारों  द्वारा पोषित कला हैं जो उन्हंे पीढियों से विरासत में मिलीं और आज भी चल रही हंै। जैसा कि नाम से ही परिलक्षित होता है ‘‘सुसज्जित करना’’ उन सभी दैनिक, राजसी एवं अनुष्ठानिक उपयोग में आने वाली वस्तुओं को कहा जाता है जिनका उपयोग मानव स्वयं को अथवा अपने आस-पास के क्षेत्र को सजाने के लिए करता रहा है।

समय सीमा की दृष्टि से देखें तो इस श्रेणी में 17वीं शती से लेकर 20वीं शताब्दी तक की वे सभी हस्तनिर्मित कलाकृतियाॅ आती हैं जिन्हें अलग-अलग रुप  से बनाया और सजाया जाता है। काष्ठ, धातु, हाथीदांत, यशब, अमूल्य पत्थर, वस्त्र कला, काॅंच-हड्डी, चीनी मिटटी इत्यादि विभिन्न प्रकार के माध्यमों का उपयोग कर तरह-तरह की कलाकृतियाॅ बनाई जा रही हंै। विभिन्न प्रकार की कलाकृतियों के माध्यम चर्चा की गयी कि कैसे कलाकारों ने सौन्दर्य एवं कलात्मकता को ध्यान में रखकर कैसे दैनिक अथवा अनुष्ठानिक उपयोग में आने वाली एक से बढकर एक कलाकृतियां की संरचना की और किस प्रकार प्राचीन भारतीय कला परम्परा का निर्वाह किया। 

कार्यकम का संचालन श्रीमती रेनू द्विवेदी सहायक निदेशक, पुरातत्व (शैक्षिक कार्यक्रम प्रभारी) ने किया। कार्यकम के अन्त में डाॅ0 आनन्द कुमार सिंह, निदेशक उ0प्र0 संग्रहालय निदेशालय ने सुसज्जित कला के सौन्दर्य एवं कलात्मक पक्ष विषय पर अत्यन्त सजीवता के साथ विद्यार्थियों के मध्य दिये गये व्याख्यान के लिए विद्वान वक्ता को धन्यवाद ज्ञापन करने के साथ-साथ प्रतिभागियों तथा अतिथियों एवं पत्रकार बन्धुओं को धन्यवाद ज्ञापित किया। 

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