रज़ा लाइब्रेरी में हुआ सेमिनार का आयोजन


रामपुर -रज़ा लाइब्रेरी के सभागार हाॅल, रंगमहल में  चल रहे तीन दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार विषय “कला, संस्कृति और साहित्य के विकास में रियासत रामपुर का योगदान“ में विभिन्न शोधकर्ताओं एवं विद्वानों ने अपने-अपने शोधपत्र प्रस्तुत किये।
प्रो० एस० एम० अज़ीज़उद्दीन हुसैन, इतिहास विभाग, जामिया मिल्लिया इस्लामिया, नई दिल्ली ने अपना विषय “एक तारीख़ी तजज़िया“ पर अपना शोध पत्र प्रस्तुत करते हुए कहा कि हिन्दुस्तान में तुर्कों की हुकूमत के क़ायम होने के बाद एक नये दौर का आग़ाज हुआ। इसलिए फौज़ के साथ-साथ उलेमा, मुशायक भी बड़ी तदाद में साथ आये। ये उलेमा अपने साथ किताबों के बड़े जख़ीरे ले कर आये और इसी के साथ हिन्दुस्तान उलूम इस्लामी के कुतुबख़ानों की बुनियादें पड़ीं। कहा कि रियासते रामपुर अंग्रेजों के जुल्मों का शिकार नहीं बना और ये बहुत बेहतर हुआ इसलिए सब तो लुट गये, देहली, लखनऊ, मैसूर लुट गया, अगर ये भी खत्म हो जाती तो जो सरपरस्ती नवाबीन रामपुर ने 1857 की तबाही के बाद इल्म, इल्मी, इल्मी जख़ीरों, दानिश्वरों की हुई वो नहीं सकती थी। नवाबीन रामपुर ने 1857 के बाद अहम मखतूतात खरीदे।
प्रो० शहजाद अंजुम, उर्दू विभागाध्यक्ष, जामिया मिल्लिया इस्लामिया, नई दिल्ली ने अपना शोधपत्र “रामपुर में उर्दू ग़ज़ल“ प्रस्तुत करते हुए कहा कि रामपुर की शायरी, जुबान, चटकाव, शौख़ी, चुलबुलापन, हुस्नो इश्क, बेबाक़ाना मामले इसमें अहम हैं। रामपुर की शायरी क़दीम रिवायत पर नज़र की जाये तो अन्दाजा होता है कि वो शोरा जिनका संबंध रामपुर से किसी न किसी तौर पर रहा है या वो शायर जिन्होंने रामपुर में आकर निवास किया मसलन अमीर मिनाई, कयाम चांदपुर, दाग़, ग़ालिब वगैरह जैसे शायरों की शायरी का प्रभाव रामपुर के मुकामी शोरा पर पड़े। रामपुर में शायरी की शानदार रिवायत रही।
डाॅ० शम्स बदायूँनी, बरेली ने अपने शोधपत्र “तारीखे लातीफ़“ को प्रस्तुत करते कहा कि तारीखे लातीफ का नुस्खा वख़ते मोल्लिफ का नुस्खा रामपुर रज़ा लाइब्रेरी में महफूज है। तारीखे लातीफ तारीखी नाम है जिससे 1340 हि० मुताबिक 1921 ई० बरामद होते हैं लेकिन सन् छपी नहीं है। ऐसा मालूम होता है कि किताब तकमील 1339 होने के बाद किताब का नाम का चुनाव किया गया है। मखतूते पर मुल्लिफ का नाम दर्ज नहीं है। ये मखतूता रामपुर रज़ा लाइब्रेरी में दफतर के इंद्रराज के मुताबिक 12 दिसम्बर 1922 ई० का लाइब्रेरी में दाखिल हुआ।
प्रो० खालिद हुसैन, पूर्व उर्दू विभागाध्यक्ष, मेरठ काॅलेज, मेरठ ने “मौलाना इम्तियाज अली अर्शी की शख्सियत, फ़न और शायरी पर रोशनी डाली तथा अर्शी साहब के क़लाम को पेश किया।
डाॅ० शरीफ अहमद कुरैशी, प्रचार्य, श्री हीरालाल डिग्री काॅलेज, मिलक, रामपुर ने अपने शोधपत्र “अफ़सानबिये अदब फ़रोग में रामपुर की ख्वातीन का हिस्सा“ प्रस्तुत करते हुए रियासते रामपुर के बारे कहा कि यहाँ क़लमबंद की गई बेशुमार मंजूम (शायरी), गद्य दास्तानों के क़लमी नुस्ख़े रज़ा लाइब्रेरी में निहायती सलीख़े से लाइब्रेरी संग्रह में सुरक्षित हैं। कहा कि अफ़सानो अदब के फ़रोग में रामपुर की ख़्वातीन की भागीदारी के इस जयाजे की रोशनी में कहा जा सकता है कि कुछ ख्वातीन अफसाना निग़ार मुल्क ग़ैरशोहरत हामिल हैं। और बहुत सी ख्वातीन लगन के साथ अफसाना निग़ारी में मैदान में कदम ज़माने की कोशिश कर रही है। कहा कि ये कहना मुनासिब न होगा कि रामपुर ख्वातीनों की अफसाना निग़ारसाज दिगर, अदबी और नस्री अदब, तहरीरों से कम नहीं है।
हक़ीम शमीम इरशाद आज़मी, ऐसोसिएट प्रोफेसर, जामिया तिब्बिया देवबंद ने तिब्ब के फ़रोग रामपुर के हक़ीमों का हिस्सा पेश किया। और रामपुर के हकीमों की एक लम्बी फेहरिस्त अपने शोध पत्र के माध्यम से प्रस्तुत करते हुए रामपुर की तिब्ब में तरक्क़ी में हकीम अज़मल ख़ाँ कोशिश को वर्णन किया और कहा तिब्ब के फ़रोग में हकीम अज़मल ख़ाँ की कोशिश को नहीं भूलाया जा सकता।
डाॅ० इरफान अहमद, लाइब्रेरियन, एकेडमिक लाइब्रेरी, अलीगढ़ ने अपने शोधपत्र में कहा कि तारीखों के शोध करने से पता चलता है कि रवादारी रियासते रामपुर की शान का इम्तियाज़ रहा है।
डाॅ० जावेद हसन, एसोसियेट प्रोफेसर उर्दू विभाग, जामिया मिल्लिया इस्लामिया, नई दिल्ली ने अपना शोधपत्र “शाद आरफ़ी की ग़ज़ल गोई“ पर शोधप्रस्तुत करते हुए कहा कि शाद आरफ़ी के कलाम को पढ़ने से मालूम होता है कि शाद आरफी रामपुर का प्रसिद्ध शायर बेहद हस्सास तबीयत का मालिक है। जिसकी शायरी में पाया जाने वाला जज़्बा ज्यादातर उनकी निजी जिन्दगी परेशानियों से भरी पड़ी हुई मालूम देती है। शाद आरफी की गज़लों में रिवायती चीज़्ाों के साथ साथ समाजी, आवामिल और उससे पैदा हुई कठिनाई का बेबाकी से इज़हार मिलता है।
डाॅ० नाज़मा ज़बी, दिल्ली ने शाद आरफ़ी की शायरी की विभिन्न प्रकार की कोशिश पर अपने ख्यालात ज़ाहिर किये।
प्रो० ज़हीर रहमती, दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली ने दाग़ देहलवी और रामपुर पर अपना शोध पत्र प्रस्तुत किया।


श्री शौकत अली एडवोकेट, रामपुर ने “रामपुर की विभिन्न शायरी व नस्री तारीख़ पर पर अपना शोध पत्र प्रस्तुत किया तथा रियासते रामपुर से लेकर आज तक तमाम शायर व नस्र निग़ार का ज़िक्र किया।
डाॅ० अनवारूल हसन कादरी, रामपुर ने अपना शोधपत्र “मेला बेनाज़ीर“ प्रस्तुत करते हुए इस मेले में आपसी मेलजोल, शादी-ब्याह, नये रिश्ते बनाना, खाना-पीना वगैरह पर रोशनी डाली।
श्रीमती मज़हरी सिद्दीक़ा ने मौलाना अब्दुस्सलाम ख़ाँ की अदबी, सखाफ़ती और उनकी शख्सियात पर रोशनी डाली।
श्रीमती साजिदा शेरवानी ने रामपुर के ग़ैर मुस्लिम फ़ारसी के 14 शायरों का विस्तार से वर्णन किया।
इस अवसर पर डाॅ० मिस्बाह अहमद सिददीक़़ी, डाॅ इरशाद नदवी, डाॅ० सबीहा, डाॅ० प्रीति अग्रवाल, श्रीमती सनम अली ख़ान इत्यादि शोधार्थियों ने अपने-अपने शोधपत्र प्रस्तुत किये।


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