राहुल गांधी की युवा टीम के सदस्य एक एक करके भाजपा का दामन थामेंगे!

जयपुर।
              संघर्ष से लीडर पैदा होते है ओर सत्ता उनको कमजोर बनाने वाली कहावत को सही माने तो पायेगें कि सोने की चम्मच लेकर सीधे राजनीति मे पैदा होकर सत्ता के शीर्ष पर पहुंचने वाले राहुल गांधी की युवा टीम के नेता सिंधिया के बाद एक एक करके भाजपा मे शामिल होगे।
         अपनी एक विशेष विचारधारा को लेकर आंदोलनों से तरासे जाने वाले नेता अच्छे-बूरे हालात मे भी अपनी पार्टी के साथ रहकर अपने विचारों को फैलाने व दैश की सियासत उस पथ ले जाने से कभी पीछे नही हटते है। लेकिन जिस नेता ने आंदोलनों मे भाग ना लेकर बीना किसी ठोस विचारधारा के जब पिता के मरने पर तूरंत उसे सत्तारूढ़ पार्टी की टिकट देकर सत्ता के शीर्ष पर पहुचाने का परिणाम सिंधिया जैसे नेताओं का कांग्रेस छोड़कर भाजपा मे शामिल होना ही नजर आयेगा।
          कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी के आंख-नाक व कान बनकर सीधे सत्ता के शीर्ष पर पहुंचने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया, सचिन पायलट, जतीन प्रसाद, व मिलिंद देवड़ा सहित अनेक युवा नेताओं की काबिलियत केवल उनके पिताओं का देहांत होना या पिताओ के राजनीति मे शीर्ष पर होना ही है। उन्होंने कभी विपक्ष मे रहकर ना आंदोलनों मे भाग लिया ओर ना ही कभी विशेष विचारधारा के लिये प्रशिक्षण पाया। जब कोई विचारधारा दिल मे घर नही कर पाये तो वो नेता हमेशा सत्ता की तरफ ही भाग कर जाते है। चाहे सत्तारूढ़ दल व उसके दल की विचारधारा एकदम विपरीत ही ना हो। उक्त युवा नेताओं के अलावा राजस्थान के दिग्गज नेता रहे नाथूराम मिर्धा की पोती ज्योति मिर्धा को 2019 के लोकसभा चुनाव मे टिकट ना देकर समझोते मे रालोपा को नागौर सीट देने की बात चली तो ज्योति ने कांग्रेस छोड़कर भाजपा मे शामिल होने की कहकर दवाब बनाकर कांग्रेस को उम्मीदवार बनाने पर मजबूर किया। ओर वो हनुमान बेनीवाल से चुनाव हार गई।
           कुल मिलाकर यह है कि विचारधारा के कोरे व बीना किसी संघर्ष से आने वाले नेताओं का किसी भी तरह से किसी भी दल मे स्थाईत्व नही हो सकता। वो हमेशा सत्ता की तरफ लपकने मे किसी तरह की कंजूसी नही करते है। सिंधिया ही नही इस तरह के सभी युवा नेता एक एक करके बूरे समय मे दल छोड़कर अच्छे दिन की चाहत मे सत्तारूढ़ दल मे छलांग लगाते रहेगे।


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