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महाराष्ट्र मामला : इस साल तीसरी बार न्यायालय ने छुट्टी के दिन सुनवाई की

नयी दिल्ली, : इस साल में यह तीसरा मौका है जब उच्चतम न्यायालय ने अवकाश के दिन किसी मामले पर विशेष सुनवाई की है। न्यायालय ने रविवार को शिवसेना-राकांपा-कांग्रेस गठबंधन की याचिका पर सुनवाई की।

शीर्ष अदालत की पूर्व कर्मचारी द्वारा तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने के बाद 20 अप्रैल को शनिवार के दिन न्यायालय ने असाधरण सुनवाई की थी।

नौ नवंबर को, शीर्ष अदालत ने शनिवार को ही अयोध्या के रामजन्म भूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद पर ऐतिहासिक फैसला सुनाया और समूची 2.77 एकड़ की विवादित भूमि रामलला को दे दी।

शनिवार रात शिवसेना-राकांपा-कांग्रेस ने न्यायालय में याचिका दायर कर महाराष्ट्र के राज्यपाल के भाजपा नेता देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाने के फैसले को रद्द करने तथा विधायकों की खरीद-फरोख्त को रोकने के लिए तत्काल शक्ति परीक्षण कराने का अनुरोध किया था। साथ में मामले की तत्काल सुनवाई का भी अनुरोध किया था।

शीर्ष अदालत की रजिस्ट्री ने मामले को सुनवाई के लिए रविवार को सूचीबद्ध किया था।

यह इस साल तीसरा मौका है जब छुट्टी के दिन उच्चतम न्यायालय ने किसी मामले की सुनवाई की है।

पिछले साल मई में, कांग्रेस ने कर्नाटक में राज्यपाल द्वारा भाजपा को सरकार बनाने का न्योता देने को चुनौती दी थी। न्यायालय ने इस मामले की सुनवाई आधी रात को की थी।

29 जुलाई 2015 को 1993 में मुंबई में हुए सिलसिलेवार बम विस्फोट के लिए मौत की सजा सामना कर रहे दोषी याकूब मेमन की फांसी पर रोक लगाने की याचिका पर विचार करने के लिए शीर्ष अदालत रातभर बैठी थी और सुबह छह बजे याचिका खारिज कर दी थी।

साल 1985 में, न्यायालय ने फेरा कानून के तहत गिरफ्तार कारोबारी की जमानत याचिका पर आधी रात के बाद सुनवाई की थी। तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश ई एस वेंकटरमैया आधी रात को जागे थे और उद्योगपति एल एम थापर को जमानत दे दी थी। इस मामले में शीर्ष अदालत की खासी आलोचना हुई थी।

थापर को रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की शिकायत पर गिरफ्तार किया गया था। उनकी कई कंपनियों ने विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम का उल्लंघन किया था।

छह दिसंबर 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद को तोड़ने के बाद छह-सात दिसंबर की दरमियानी रात को एक न्यायाधीश के आवास पर सुनवाई हुई थी।

तब अयोध्या मामले की सुनवाई शीर्ष अदालत के तत्कालीन न्यायाधीश न्यायमूर्ति एम एन वेंकटचलैया के घर पर हुई थी। वह बाद में भारत के प्रधान न्यायाधीश बने थे।

इस मामले में अयोध्या में कारसेवकों द्वारा विवादित ढांचा तोड़ने के तुरंत बाद एक पक्ष ने शीर्ष अदालत का रूख किया था।

अपने आवास पर सुनवाई के बाद, न्यायमूर्ति वेंकटचलैया की अगुवाई वाली पीठ ने विवादित स्थल पर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया था।

याकूब मेमन की तरह ही, फांसी पर रोक लगाने की कई याचिकाएं रात में न्यायालय में दायर की गई हैं।

राष्ट्रीय राजधानी के रंगा-बिल्ला के प्रसिद्ध मामले में प्रधान न्यायाधीश वाई वी चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ आधी रात को बैठी थी और इस बात विचार किया था कि उन्हें फांसी दी जाए या नहीं।

इसी तरह के अन्य मामले भी हैं।


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