जल, वायु, ऊर्जा, भूमि, जैव विविधता जैसे सीमित संसाधनों का उचित दोहन और नई तकनीकों का उपयोग वक्त की जरूरत: दुर्गा शंकर मिश्रा
हरित शहरी क्षेत्र सामाजिक और प्राकृतिक स्थायित्व में जहां अहम भूमिका निभाते हैं, वहीं जीवन की गुणवत्ता में भी महत्वपूर्ण सुधार लाते हैं। आज यहां केंद्रीय लोक निर्माण विभाग (सीपीडब्ल्यूडी) द्वारा "हरियाली और भू-परिदृश्य" पर आयोजित एक राष्ट्रीय संगोष्ठी इसी बात पर ध्यान केंद्रित किया गया था, जिसका उद्देश्य हरियाली और स्वच्छ टिकाऊ विकास को बढ़ावा देना है। आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय सचिव श्री दुर्गा शंकर मिश्रा ने इस संगोष्टी का शुभारम्भ किया।
इस संगोष्ठी में सीपीडब्ल्यूडी और सरकार व अन्य निजी संगठनों के उद्यान विशेषज्ञ, आर्किटेक्ट और अभियंताओं ने हिस्सा लिया। संगोष्ठी के लिए 40 लेख (पेपर) स्वीकार किए गए और प्रतिष्ठित विशेषज्ञों द्वारा प्रस्तुतीकरण दिया गया। इस समारोह के दौरान सीपीडब्ल्यूडी प्रकाशन और ई-मॉड्यूल भी जारी किए गए।
संगोष्ठी में भाग लेने वालों को संबोधित करते हुए श्री दुर्गा शंकर मिश्रा ने कहा कि जल, वायु, ऊर्जा, भूमि और जैव विविधता जैसे सीमित संसाधनों के उचित दोहन और नई तकनीकों, नवीकृत ऊर्जा, जल संरक्षण, अपशिष्ट जल के पुनः उपयोग, बारिश के जल के संरक्षण आदि के द्वारा टिकाऊ विकास मौजूदा दौर की जरूरत है। उन्होंने विशेष रूप से निर्माण क्षेत्र में हो रहे अपने कार्यों में टिकाऊ विकास के उपायों को अपनाने और प्रसार करने में अग्रणी भूमिका निभाने के लिए सीपीडब्ल्यूडी की सराहना की।
सीपीडब्ल्यूडी के महानिदेशक श्री प्रभाकर सिंह ने हाल के दिनों में सीपीडब्ल्यूडी की उपलब्धियों के बारे में बताया। उन्होंने टिकाऊ विकास के उपायों को अपनाने, मानव संसाधन प्रबंधन, त्वरित और गुणवत्तापूर्ण निर्माण, नई तकनीकों को अपनाना, गुणवत्तापूर्ण व उचित लागत के साथ समयबद्ध तरीके से परियोजनाओं को पूरा करने, नए ग्राहक जोड़ने, नए एमओयू करने और आवासन व शहरी कार्य मामलों के मंत्रालय के सहयोग और मार्गदर्शन के साथ विभाग की नई नीतिगत पहलों को लागू करने आदि पर बात की।
संगोष्ठी के दौरान निम्नलिखित सिफारिशें की गईं:
• हरित शहरी क्षेत्र सामाजिक और प्राकृतिक स्थायित्व में महत्वपूर्ण भूमिका तो निभाते ही हैं, साथ ही जीवन की गुणवत्ता में भी खासा सुधार करते हैं।
• हरियाली और घने वृक्षारोपण से ऊर्जा के संरक्षण पर एक बड़ा प्रभाव पड़ता है और भवनों की ऊर्जा आवश्यकता में भी कमी आती है।
• टिकाऊ पर्यावरण, प्रदूषण मुक्त स्वच्छ हवा को बरकरार रखने के क्रम में पौधारोपण कार्य को आगे बढ़ाना आवश्यक है।
• भूमि की लागत कई गुना बढ़ गई है और ऊंची इमारतों का निर्माण तेज होता जा रहा है, लोगों को बमुश्किल ही हरियाली के लिए कोई क्षेत्र मिल रहा है। इसे ध्यान में रखते हुए वृक्षारोपण, हरियाली और अन्य पर्यावरण के अनुकूल पहलों करते हुए छोटे पेड़, जमीन पर बिछी घास, लटकती हुई घास की टोकरी, लताओं आदि के माध्यम से इमारत के चारों ओर योजनाबद्ध तरीके से हरियाली बढ़ाई जानी चाहिए।
• इमारतों के निर्माण में लकड़ी के विकल्प के इस्तेमाल की जरूरत है। बांस जैसे विकल्पों के उपयोग को प्रोत्साहित किए जाने की जरूरत है।
• इस क्षेत्र में नई तकनीकों के कार्यान्वयन के लिए भू-परिदृश्य और बागवानी में लगे व्यक्तियों को दिशा-निर्देश और उचित प्रशिक्षण प्रदान किया जाना चाहिए, ताकि लंबे समय के परियोजना के साथ श्रम और लागत को बचाया जा सके।
• देशी और बढ़ते पेड़ों के संरक्षण और रोपाई पर जोर दिया जाना चाहिए।
• हर्बल और औषधीय पौधों को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है। हर्बल पौधे जीवन को स्वस्थ रखने के लिए काफी उपयोगी होते हैं।
• स्वस्थ और पौष्टिक भोजन के लिए जैविक खाद के प्रयोग को निरंतर अपनाने की आवश्यकता है।
• ड्रिप सिंचाई, स्प्रिंकलर सिंचाई और पॉपअप सिस्टम जैसे जल संरक्षण सिंचाई पद्धति को बड़े स्तर पर अपनाने की जरूरत है।
• पौधे और हरियाली जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों को कम करने में मदद करते हैं। इसलिए हर व्यक्ति को कम-से-कम एक पेड़ लगाना चाहिए।
• हर देश, हर शहर, हर समाज और हर व्यक्ति द्वारा एक अभियान के तौर पर हरित पहल की जानी चाहिए, ताकि आने वाली पीढ़ियां खुशहाल और स्वस्थ जीवन जी सकें।
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